आया कैसा दौर
दिल से कुछ होते लोग,ज़ुबान से कुछ और हैं।
मुस्क़ान में भी धोखा,आँखों से भी चोर हैं।।
मौका कोई छोड़ें न,बातें करते हैं बड़ी।
अगर बस में हो पल में,करदें खाट खड़ी।
देते हैं उपदेश मगर,खुद करते ना गौर हैं।
मुस्क़ान में भी धोखा,आँखों से भी चोर हैं।।
टाँगें खींचें और की,खुद ही बढ़ते क्यों नहीं?
देख औरों की सफलता,वैसे चलते क्यों नहीं।
मानव से मानव जलें,देखें ऐसा दौर हैं।
मुस्क़ान में भी धोखा,आँखों से भी चोर हैं।।
सच्ची करना तारीफ़,हौंसला बढ़ाता ख़ूब।
बिना भाव की बात ये,तुम करो प्रेम में डूब।।
औरों की खुशी अपनी,खुशियाँ चारों छोर हैं।
मुस्क़ान में भी धोखा,आँखों से भी चोर हैं।।
दिल से कुछ होते लोग,ज़ुबान से कुछ और हैं।
मुस्क़ान में भी धोखा,आँखों से भी चोर हैं।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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