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10 Jan 2017 · 1 min read

आम आदमी …..

221 1221 1221 122
आम आदमी …..

हमने तुमको नोट बदलते नहीं देखा
काले-उजले फेर में चलते नहीं देखा

तुम सितमगरों की दुनिया,रहने के आदी
चट्टान दबे नीचे, निकलते नहीं देखा

जो आज कमा ली,हो गया बसर के लायक
हो ईद- दिवाली कि, उछलते नहीं देखा

टूटे हुए लगते हैं सभी चाँद सितारे
किस्मत की बुलन्दी को निगलते नहीं देखा

पानी की तरह हो गया है खून तुम्हारा
खूं जैसे इसे हमने उबलते नहीं देखा

सुशील यादव
२६.११.१६

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