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24 Aug 2020 · 1 min read

आप बहुत याद आते हो

लाड़ प्यार के वो जमाने कभी
मेरे भी अपने हुआ करते थे
कभी किसी रोज माँ पापा की
दुलारी मैं भी हुआ करती थी।
प्रकृति कठोर हो बहुत तुम
ममता और रिपुता दोनों शिद्दत से
किया करती हो तरसती होगी बेटी
लाड़ प्यार को कभी सोचा होता तुमने
तुम दोनों का न होना मुझे
इतना कचोट सकता है समझो
रस्मों, रिवाजों, तमाशों में लगी हूँ
लोग संभल जाते हैं,पर मैं न सम्भली हूँ।
वो लाड़ प्यार के जमाने याद आते है
मस्त हुआ करते थे वो दिन पुराने भी
चुप मेरे होने पर भी तुम जान जाते थे
प्यारा सा वक्त आज भी याद आता हैं।
वो जमाने भी क्या हुआ करते थे
हर रोज हमारे ही हुआ करते थे
माँ पापा के दुलारे हम भी हुआ करते थे।
लाड़ के वो जमाने हमारे भी हुआ करते थे।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद

Language: Hindi
5 Likes · 5 Comments · 342 Views
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