आन्दोलन या गुंडागर्दी (कविता)
हंगामा और आगजनी से बात नहीं बनती ,
बात बनती है मसले को शांति से सुलझाने से .
तुम जिसे कहते हो आन्दोलन; जी नहीं जनाब!
यह तो गुंडागर्दी है सरासर ,पूछ लो चाहे किसी से .
अपनी बात मनवाने का यह तो कोई तरीका नहीं ,
अपना मुद्दा रखना चाहिए तुम्हें बड़ी शांति /धेर्य से .
आगजनी कर,तोड़-फोड़ कर क्षति पहुंचाते हो राष्ट्र को ,
यह राष्ट्र संपत्तियां बनी हैं जन-जन के खून-पसीने से.
इतना ही तुममे जोश/रोष / क्रोध हद से ज़ायेदा है तो ,
सबसे पहले क्यों शुरुयात नहीं करते अपने ही घर से ?
मनुष्य का काम है निर्माण ,विध्वंस /विनाश नहीं ,समझे!
अपने इस कुकृत्य से तुम तो गिर जाते हो इंसानियत से.
माना की तुम्हें संविधान ने दिए कई मौलिक अधिकार ,
मगर एक देशवासी होने के नाते बेखबर हो अपने कर्तव्यों से .
व्यक्तिगत हित से कहीं ज़ायेदा अहम् है राष्ट्र हित ,
मांगे वोह उठाओ जिसका सरोकार हो राष्ट्र के हित से .