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18 Mar 2021 · 1 min read

आने लगी

आने लगी
कब्बाली टाइप
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बिना लड़े ही उन्हें हार नजर आने लगी ।
बातों बातों में खुली खार नजर आने लगी ।।

जैसे तैसे सजाई सेज पै बैठी दुल्हन ,
मिलाई आँख तो बीमार नजर आने लगी ।

सिद्धांत लोहे के जंगाल खा गये सारे ,
कुर्सी बंगाल की लाचार नजर आने लगी ।

उसी के साथ जवानी से बुढापा आया,
दोगली अब मेरी सरकार नजर आने लगी ।

पड़े दहशत में हैं जंगल के जानवर सारे,
लोमड़ी सबको ही खूँखार नजर आने लगी ।।

हजारों कष्ट सहे तब कहीँ पाला पोसा,
वही माँ बेटे को अब भार नजर आने लगी ।।

जहाँ खेले थे सभी भाई एक आँगन में,
गाँव में अब वहाँ दीवार नजर आने लगी ।।

मांगने न्याय गई क्या पता मिला कि नहीं,
चुनरी महिला की तार तार नजर आने लगी ।।

चार दिन जिम क्या गई देखो वो सूखी जामुन,
टहनी टहनी में अब बहार नजर आने लगी ।।

साल भर बाद में मजनू को वो प्यारी लैला,
एकदम पुराना अखबार नजर आने लगी ।।

जैसे तैसे कुरोना नदी के तट पर आते ,
नाव फिर देश की मजधार नजर आने लगी ।।

जहाँ चुनाव वहाँ जाते नहीं कीटाणु,
बाँकी प्रदेशों में भरमार नजर आने लगी ।।

बुढ़ापा है सँभल के बैठ मन की गाडी में,
गुरू कुछ तेज ही रफ्तार नजर आने लगी ।।

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश

1 Like · 4 Comments · 349 Views
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