आने – जाने पे वो सबपे नज़र रखती है
आने – जाने पे वो सबपे नज़र रखती है
किसके दिल में है क्या ये भी ख़बर रखती है
कैसा माहौल हो वो सबमें ही जी लेती है
आज की नारी है जो ऐसा हुनर रखती है
एक पल को भी नहीं भूल सके मां सबकी
दिल के टुकड़े की तरह अपना पिसर रखती है
भूल जाता हूँ मैं सारे जहां के ग़म को
अपने सीने पे मां जब मेरा ये सर रखती है
भूल कर भी तू किसी को न बद्दुआ देना
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
इन्हें मासूम न ——– जानो के बेचारी औरत
प्यार के साथ ये आँखों में क़हर रखती है
खूब किरदार निभाती है ये औरत “प्रीतम”
शाम जुल्फ़ों में तो चहरे पे सहर रखती है
प्रीतम राठौर
श्रावस्ती (उ०प्र)