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20 Jul 2021 · 1 min read

आध्यात्मिकता एवं सामाजिक जीवन

आध्यात्मिकता के विकास के लिए आवश्यक नहीं है कि एकाकीपूर्ण जीवन जीया जाए।
सामाजिक परिवेश में रहकर भी आध्यात्मिकता का विकास किया जा सकता है।
सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।
इसके लिए यह आवश्यक है कि व्यक्तिगत वस्तुनिष्ठ सुखों का त्याग कर आत्मसंतोष से परिपूर्ण मनस को विकसित करना होगा।
द्वेष ,अहंकार , एवं प्रतिस्पर्धी भावनाओं का दमनकर सर्वकल्याणकारी सद्भावना का निर्माण करना होगा।
सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु प्रबुद्ध चिंतनयुक्त प्रज्ञाशक्ति विकास के प्रयास करने होंगे।
निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आत्मविश्वास एवं दृढ़संकल्पित भाव की आवश्यकता होगी।
सामाजिक मूल्यों एवं मान्यताओं को दृष्टिगत रखते हुए समस्याओं के निदान खोजने होंगे,
और व्यक्तिगत विवाद की स्थिति उत्पन्न होने से बचना होगा।
जहां तक संभव हो कल्याणकारी भावना से सर्वसम्मत निर्णय लेने होंगे।
व्यक्तिगत सोच एवं समूह सोच में उपयुक्त तारतम्य स्थापित करना पड़ेगा , जिससे लिए गए निर्णयों में निरंकुश तत्व के समावेश की दुर्भावना के निर्माण से बचा जा सके।
समय-समय पर एकाग्रतापूर्ण आत्मचिंतन कर आध्यात्मिक सोच का विकास किया जा सकता है।
यह तभी संभव है जब मानस पटल को सभी प्रकार की व्यक्तिगत चिंताओं से मुक्त रखा जा सके , एवं निष्ठापूर्वक सामाजिक दायित्वों का निर्वाह कर , तथा अल्पकालीन कष्टों एवं दुःखों के प्रभाव से स्वयं को अविचलित रखकर दीर्घकालीन लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयास किए जाऐं।

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 4 Comments · 311 Views
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