आधुनिक हो गये
आधुनिक हो गये
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संस्कृति से दूर, सभ्यता से विमुख
हम अंग्रेजीयत में खो गये
नग्नता को अंगीकार कर
संस्कारों से छेड़छाड़ कर
मूलतः पाश्चात्य में खो गये
अब प्रतीत होता है यारों
वाकई हम आधुनिक हो गये।
गीता, रामायण के मर्म भूले
सब रीति रिवाज कर्म भूले
आधुनिकता के आधीन हो
पुरुखों के परामर्श भूले
अपनी परमपराओं को भुल
दुनिया की रंगीनियों मे खो गये
वाकई हम आधुनिक हो गये।
रहन सहन सब बिखर गया
चाल ढाल भी बदल गये
बोलचाल भाषा परिवर्तित
भेष भूषा भी बदल गये
अपने परिधानों से विलग
हम अंग्रेजीयत में खो गये
वाकई हम आधुनिक हो गये।
रिश्ते नाते टूट रहे
अपने अपनों को लूट रहे
ना जाने ये दौर है कैसा
रक्त के रिश्ते टूट रहे
रक्त के रिश्ते भूल भुलाकर
किस लोक में खो गये
वाकई हम आधुनिक हो गये।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार