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14 Jan 2020 · 2 min read

*** ” आधुनिकता के असर…….! ” ***

* न रहा अब जंगल ,
अब न रहा ओ अमरैय्य की शीतल छांव।
न झरनों की कल-कल छल-छल ,
और न..ही नदी पर बहती अब नाव।
न कहीं पीपल की ,
न कहीं बरगद की सुकून ओ ठंडी छांव।
चिलचिलाती धूप से भैय्या ,
जलता है अब अपना पांव।
होती थी कभी जहाँ चौपाल ,
बन गया है वहाँ मधुशाला।
लेकर घुट “गरल” की प्याला ,
होंश में न रहा, अब अपना नंदलाला।
मदिरा-मय की धार में.. ,
तू-तू मैं-मैं की बौछार में ;
बिखर गया अब ,
अपना मधुवन-सा नंदन गाँव।

** न कहीं छत पर गौरय्या रानी ,
और न किसी दर पर मटके में पानी।
न कहीं लटकी हुई होती,
किसी घर में धान की बाली ।
सूरज की किरणों में है तपन, अब इतनी.. ;
कितना भरूँ मटकों में पानी ,
हो जाती है मिनटों में खाली।
न कहीं कोयल की कुहक अब..,
न कहीं मयूरी की मनोरम झलक।
और अब न कहीं कलरव करती ,
चिड़ियों की चहक।
न कहीं हरियाली की अनुपम रौनक ,
और अब न कहीं शीतल चंदन की महक।
धुल और प्रदूषण के हैं, इतनी असर ;
हर जगह-जगह पर है ,
अब बीमारियों के क़हर।
है शोरगुल हर जगह आज…!
और पराबैंगनी किरणों के आगाज़।
छिद्र हो गया है “ओजोन परत ” ,
और कैंसर कर रहा है हम सब पर राज।
कहीं-कहीं पर है जो बाग-बगीचे ,
छुपा-छूपी खेलते हैं जिसके पिछे बच्चे ;
औद्योगिक प्रतिष्ठान की प्रतिकार से…!
कट रहा है वह सब आज।

*** होती थी जहाँ किलकारियाँ ,
हर वो गाँव टूट , बन गया शहर।
और कहते हैं देखो भैय्या ,
हो गये हम कितने प्रखर।
ये आधुनिकता की उपज ,
वैज्ञानिकता की गरज।
कर गई है हमको विवश ,
और प्रदूषित हवाओं से ;
बुझ रही है अपना जीवन कलश।
CO, CO2 और SO2 की है इतनी क़हर ;
पर्यावरण पर , अब घुल गया जहर ।
देख लिया हमनें,
प्रकृति को छेड़ने का असर ;
धरातल पर घट रहा है अब जल स्तर।
तप रहा है जल-थल ,
सीमा लांघ रहा है सागर तल।
पिघल रहा है हिम-शिखर ,
और जलमग्न हो रहा है अब अपना घर।
मुझे क्या पता..? ,
” विकास ” की गति ;
“पलायन” वेग से भी है अधिक।
शायद “प्रगति पुष्पक विमान” भी ,
अब परिक्रमा कर रहा है;
” यमलोक ” के करीब-करीब या नज़दीक।
यारों हो सकता है ,
यह मेरे पागल मन की विचार ;
पर.. लगता अब यही है ,
” यमराज जी ” कर जायेंगे धरती पर ,
अपना अधिकार।
और हम सब ” यमदूत ” के इशारों पर..!
लगायेंगे ” यमराज ” की जय जय कार।
फिर मिट जायेगा..
” मनु ” का सारा परिवार ।
फिर मिट जायेगा…
” मनु ” का सारा परिवार ।।
आधुनिकता की इस जंगल से ,
अब तो कोई हमें निकाले।
भौतिकता की नशा छोड़ ,
” मेरे गाँव को अब तो मुझे कोई लौटा दे। ”
” मेरे गाँव को अब तो मुझे कोई लौटा दे।। ”

*****************∆∆∆***************

* बी पी पटेल *
बिलासपुर ( छ.ग. )

Language: Hindi
2 Comments · 671 Views
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