आधार छंद–मुक्तामणि (दोहा मुक्तक)
1
हँसते रोते ज़िन्दगी, अपना समय बिताती
मुश्किल राहों से हमें , मंज़िल तक पहुँचाती
खत्म न होती है कभी , इसकी सुनो पढ़ाई
पाठ नया हर रोज ही , पढ़ा हमें ये जाती
2
खुश रहना ही शत्रु का , लगती एक सजा है
सुख हरने में ही जिसे , आता बहुत मज़ा है
देख दूसरों को कभी, खुद को दुखी न करना
काम करो जिसमे सदा, दिल की रही रज़ा है
3
यादों के हम गॉव में , बस घूमा करते हैं
बीते पल में पाँव ये , खुद ही चल पड़ते हैं
बिछड़ गए हैं लोग जो , याद उन्हें कर करके
नैनों की हम नाँव में , आँसूं ही भरते हैं
4
पाकर तुमसा मीत हम ,फूले न समाते हैं
लिख लिख कर हम प्रीत के, गीत गुनगुनाते हैं
जो हमें रुलाते रहे , अकेला ही समझकर
वो मौसम भी अब हमें, देख मुस्कुराते हैं
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)