आदमी क्या करता है
आदमी क्या करता है तुम मेरी बुराई किसी दूसरे से करते हो, वही दूसरा तुम्हारी बुराई मुझसे करता है, तीसरे की बुराई मैं किसी और से कर देता हूँ। यही होता आया है, आज से नहीं सदियों से, देखना जो महापुरुष तुम्हारे लिए सबसे बढ़कर होगा, इज्जतदार होगा, पूजनीय होगा, वही महान आदमी किसी दूसरे के नज़रों में घटिया होगा, जो घटिया होगा वो भी कहीं न कहीं बढिया होगा, हालाँकि बढिया भी ज़रूर कहीं घटिया होगा, ये सतत है “क्योंकि इंसान चाहता ही दुःख है” जिसके लिए वो ये तमाम तरह की कुरीतियों और प्रचलनों को करते आया है, और ये सब पीठ पीछे ही करते आया है, किसी रोज़ सोचना इस बात को, ख़ुद में सोचना! बिल्कुल एकांतवास में, ध्यान रहे कि तुम बस हरेक दिन/सप्ताह/महीने बस कुछ लोगो की अच्छाइयाँ गिनाना शुरू कर दो, देखना तुम्हारा व्यक्तित्व धीरे-धीरे निखर रहा होगा, तुम साक्षात मानव बन रहे होंगे।