— आत्मा —
आत्मा, अजर है, अमर है
पर नश्वर नही है
हर रूप में आती है हर बार
देखो यह फिर भी अमर है
कपड़ों के जैसे चोला बदलता है
हर भेष में नया ही दिखता है
करती है कर्म हर जन्म में
फिर भी यह अमर है
पाप करो या पुण्ये करो
जिस्म तो यही रह जाता है
कर्मों के हिसाब से फल आता है
क्यूंकि यह तो अमर है
भूलवश कुछ भी हो जाता है
जानबूझ कर किया नुक्सान पहुंचाता है
सोच कर बढाओ कदम अपने
क्यूं आत्मा ने ही फल पाना है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ