Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Nov 2020 · 3 min read

आत्मा और शरीर का सम्बन्ध

आत्मा और शरीर दो भिन्न भिन्न विचार है । आत्मा तत्व नही यह एक विचार है जिसे किसी ने कभी देखा नही महसूस नही किया केवल सुना है समझा है और उसे माना है। अब यह विचार कितना सत्य है इसका कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नही किन्तु विस्व के लगभग सभी धर्मों में यह विचार मान्य है ।

आत्मा एक बिजली के समान है और शरीर तो शरीर ही है अब चाहे इसे एक बल्ब की तरह या बिजली के तार की तरह मान लो । जैसे बिजली का बल्ब बिना बिजली के बेकार है निर्जीव है उसी प्रकार शरीर भी बिना आत्मा के स्थूल है । आत्मा उसमे जान डालती है और फिर शरीर का एक भाग मस्तिष्क विचार निर्माण कर शरीर के अन्य अन्य भागों से उन विचारों को साकार करने के लिए उनको आदेश देता है ।

जिस प्रकार बिजली एक समान है उसी प्रकार आत्मा एक समान है जिस प्रकार बल्ब भिन्न भिन्न होते भिन्न भिन्न फिलामेंट के भिन्न भिन्न लम्बाई चौड़ाई के भिन्न भिन्न वाट के उसी प्रकार शरीर भी भिन्न भिन्न होते है । जैसा बल्ब होगा बिजली की चमक और आभाष भी वैसा ही होता है। ज़ीरो वाट के बल्ब में वही बिजली अति मध्यम होती है तो वही 100-200वाट के बल्ब में यही बिजली तेज़ रौशनी को होती है । उसी प्रकार कोई आत्मा लम्बे चौड़े गठीले बदन में होती है तो कोई मध्यम या बौने शरीर में। कोई आत्मा एक दम तन्दरुस्त शरीर में रहती है तो कोई बीमार शरीर में।

जिस प्रकार अगर बिजली का तार सही हुआ तो निर्माण करता है और खराब है तो विनाश कर देता है उसी प्रकार अगर आत्मा अच्छे दिमाग बाले शरीर में रहती हुआ तो समाज का उत्थान होता है और ख़राब प्रवत्ति के शरीर में रहती है तो समाज का पतन होता है। इस प्रकार कौन सा तार चयन किया जाय बिजली के लिए यह बिजली निर्णय नही लेती उसी प्रकार कौन सा शरीर किसी आत्मा को सौंपा जाय इसका निर्णय भी आत्मा नही लेती। वास्तव में आत्मा खुश बिजली की तरह कुछ महसूस नही करती केवल अपना एहसास दूसरों को कराती है । बिजली और आत्मा दोनों ही समान रूप से बिना किसी भेद के सभी में समान रूप से रहती है।

जिस प्रकार किसी बड़ी कम्पनी की बिजली लोगों की सेवा पर सायद खुश होती होगी उसी प्रकार किसी महान पुरुष के शरीर की आत्मा भी इसी बात पर खुश जरूर होती होगी कि उसे एक ऐसे व्यक्ति की सेवा करने का मौका मिला किन्तु किसी असफल व्यक्ति या बुरे व्यक्ति को लेकर क्या आत्मा यह सोचती होगी कि मैं कैद हो गयी हूँ एक ऐसे शरीर में जिसके बारे में लोग अच्छा नही कहते ,क्या आत्मा को इस बात का दुःख होता होगा कि उसका शरीर असफल है , किन्तु आत्मा कुछ मजसुस नही करती बल्कि दूसरों के महसूस कराती है।

आत्मा होती भी है या नही होती यह कोई वैज्ञानिक तथ्य नही है बल्कि एक समझ है जिसे मानो तो एक आस्था निर्मित होती है और ना मानो तो कोई फर्क नही पड़ता।जिस प्रकार किसी तेज़ गति से घूमते पंखे की पंखड़ी दिखाई नही पड़ती जबकि वो होती है और किसी कठिन सवाल के 4 विकल्प होने पर भी हम इसका सही विकल्प नही बता पाते जबकि उसका उत्तर हमारी आँखों के सामने ही होता है , उसी प्रकार सायद आत्मा भी एक ऐसी ही पहेली जिसे जिसको देखने के लिए कुछ निश्चित मानकों की जरूरत जरूर होगी और जब यह पूरे हो जाय तो सायद हमको दिख भी जाय।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 531 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
View all
You may also like:
हर पल ये जिंदगी भी कोई ख़ास नहीं होती।
हर पल ये जिंदगी भी कोई ख़ास नहीं होती।
Phool gufran
-  मिलकर उससे
- मिलकर उससे
Seema gupta,Alwar
*माटी कहे कुम्हार से*
*माटी कहे कुम्हार से*
Harminder Kaur
सजी सारी अवध नगरी , सभी के मन लुभाए हैं
सजी सारी अवध नगरी , सभी के मन लुभाए हैं
Rita Singh
फिर से आंखों ने
फिर से आंखों ने
Dr fauzia Naseem shad
जिंदगी आंदोलन ही तो है
जिंदगी आंदोलन ही तो है
gurudeenverma198
*घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】*
*घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
........,
........,
शेखर सिंह
जाना ही होगा 🙏🙏
जाना ही होगा 🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ
Ram Krishan Rastogi
ऐंचकताने    ऐंचकताने
ऐंचकताने ऐंचकताने
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
जिसकी जिससे है छनती,
जिसकी जिससे है छनती,
महेश चन्द्र त्रिपाठी
होली पर
होली पर
Dr.Pratibha Prakash
💐प्रेम कौतुक-155💐
💐प्रेम कौतुक-155💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
खुद से भी सवाल कीजिए
खुद से भी सवाल कीजिए
Mahetaru madhukar
प्रतिध्वनि
प्रतिध्वनि
Er. Sanjay Shrivastava
बिहार में दलित–पिछड़ा के बीच विरोध-अंतर्विरोध की एक पड़ताल : DR. MUSAFIR BAITHA
बिहार में दलित–पिछड़ा के बीच विरोध-अंतर्विरोध की एक पड़ताल : DR. MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
कुछ उत्तम विचार.............
कुछ उत्तम विचार.............
विमला महरिया मौज
उज्जयिनी (उज्जैन) नरेश चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य
उज्जयिनी (उज्जैन) नरेश चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य
Pravesh Shinde
मेरे हैं बस दो ख़ुदा
मेरे हैं बस दो ख़ुदा
The_dk_poetry
"व्यर्थ है धारणा"
Dr. Kishan tandon kranti
Many more candles to blow in life. Happy birthday day and ma
Many more candles to blow in life. Happy birthday day and ma
DrLakshman Jha Parimal
सफल
सफल
Paras Nath Jha
आम जन को 80 दिनों का
आम जन को 80 दिनों का "प्रतिबंध-काल" मुबारक हो।
*Author प्रणय प्रभात*
इस दुनिया में कोई भी मजबूर नहीं होता बस अपने आदतों से बाज़ आ
इस दुनिया में कोई भी मजबूर नहीं होता बस अपने आदतों से बाज़ आ
Rj Anand Prajapati
एक पूरी सभ्यता बनाई है
एक पूरी सभ्यता बनाई है
Kunal Prashant
शांति तुम आ गई
शांति तुम आ गई
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
कोई दवा दुआ नहीं कोई जाम लिया है
कोई दवा दुआ नहीं कोई जाम लिया है
हरवंश हृदय
(15)
(15) " वित्तं शरणं " भज ले भैया !
Kishore Nigam
Loading...