आज वो क्या मिले हम चहकने लगे।
ग़ज़ल-
वज्न:- 212 212 212 212
आज वो क्या मिले हम चहकने लगे।
जो नज़र मिल गई हम बहकने लगे।।
तुमने हमको गले से लगाया कभी।
इत्र की तरहा जबसे महकने लगे।।
हिचकियाँ जब भी आये तुम्हें जानेमन।
तुम समझना कि हम याद करने लगे।।
कितनी रातें गुजारीं तेरी चाह में।
चाँद को देख कर हम चमकने लगे।।
जिस्म से रूह का जब मिलन होयगा।
‘कल्प’ जन्मों की तब प्यास बुझने लगे।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’