Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2021 · 2 min read

आज माँ के ऊपर छिपकली गिर गई

आम भारतीय घरों की तरह हमारे घर में भी महावारी के दौरान औरतें रसोई में खाना नहीं बनाती हैं। मान्यता है कि इस प्रक्रिया के दौरान औरतें पवित्र नहीं होतीं, इसलिए उन्हें रसोई व पूजाघर में जाने से मनाही होती है। कुछ अन्य लोग कहते हैं कि माहवारी में रक्त बहाव के करण महिलाओं का शरीर कमजोर पद जाता है, इसलिए उन्हें आराम करने की हिदायत दी जाती है। परिणामस्वरूप वे रसोई का कोई कार्य नहीं करतीं। कारण चाहे जो भी हो, ये प्रथा वर्षों से चली आ रही है।
बचपन में मैं देखा करती थी कि हर 25-30 दिन में ऐसा मौका आता था जब मम्मी की जगह दादी खाना बनाती थीं। पर इस बात पर घर में कोई सवाल जवाब नहीं होता था कि आज बहु की जगह सास क्यूं खाना बना रही है।
जब मैं थोड़ी बड़ी हुई, लगभग 8 साल की, तब इस विचित्र प्रथा को लेकर सवाल करने लगी। पर मां हर बार कुछ ना कुछ बहाना बनाकर मुझे शांत कर देती थी।
एक बार की बात है, मैंने मां से पूछा कि आप क्यूं बैठी हो, और दादी क्यूं खाना बना रही हैं। उस समय मैं महावारी की प्रक्रिया को समझने के लिए बहुत छोटी थी। इसलिए मां ने ये जवाब दिया
” आज बाथरूम में मेरे ऊपर छिपकली गिर गई थी। और अब मैं 3 दिन तक अशुध्द हूं इसलिए रसोईघर में खाना नहीं बना सकती। ”
मेरे चंचल मन को देखते हुए मां ने ये कहानी रची थी, ताकि मैं उनसे बार बार सवाल ना करूं। और असर ये हुआ कि मुझे इस कहानी पर पूर्ण रूप से विश्वास भी हो गया था।
अगले महीने जब मैंने देखा कि मां की जगह दादी खाना बना रही हैं, तब मैंने मां से पूछा, ” आपके ऊपर फिर से छिपकली गिर गई ? ”
इस तरह हर महीने मां के ऊपर छिपकली गिरती रही, और ये सिलसिला चलता रहा।
फिर जब मैं 12 वर्ष की हुई, तब मुझे पहली बार रजस्वला हुई। तब मां ने मुझे सब कुछ समझाया। माहवारी का कारण बताया, एक नारी के शरीर में इसकी क्या उपयोगिता है, और कैसे हम खुदकी साफ़ सफाई कर सकते हैं, ये सब समझाया। और अंत में मां ने मुझे बताया कि भारत में महावारी को लेकर कई तरह की प्रथाएं चली आ रही हैं। जैसे कि 3 दिन तक आराम करना, रसोई और पूजा घर में प्रवेश ना करना और भी ना जाने क्या क्या।
ये सब सुनने के बाद मैंने कहां, ” मतलब आज छिपकली मेरे ऊपर गिरी है ”
और मेरा जवाब सुनकर मां और दादी दोनों मुस्कुरा उठीं।

5 Likes · 9 Comments · 265 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
31 जुलाई और दो सितारे (प्रेमचन्द, रफ़ी पर विशेष)
31 जुलाई और दो सितारे (प्रेमचन्द, रफ़ी पर विशेष)
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
खुद से रूठा तो खुद ही मनाना पड़ा
खुद से रूठा तो खुद ही मनाना पड़ा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दिन में रात
दिन में रात
MSW Sunil SainiCENA
नींबू की चाह
नींबू की चाह
Ram Krishan Rastogi
बाल कविता: वर्षा ऋतु
बाल कविता: वर्षा ऋतु
Rajesh Kumar Arjun
काले काले बादल आयें
काले काले बादल आयें
Chunnu Lal Gupta
मां कात्यायनी
मां कात्यायनी
Mukesh Kumar Sonkar
एक हाथ में क़लम तो दूसरे में क़िताब रखते हैं!
एक हाथ में क़लम तो दूसरे में क़िताब रखते हैं!
The_dk_poetry
*बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)*
*बुरे फँसे कवयित्री पत्नी पाकर (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
जड़ता है सरिस बबूल के, देती संकट शूल।
जड़ता है सरिस बबूल के, देती संकट शूल।
आर.एस. 'प्रीतम'
गीत..
गीत..
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
दोस्ती गहरी रही
दोस्ती गहरी रही
Rashmi Sanjay
खामोश रहना ही जिंदगी के
खामोश रहना ही जिंदगी के
ओनिका सेतिया 'अनु '
कैसे भूल जाएं...
कैसे भूल जाएं...
Er. Sanjay Shrivastava
पृथ्वीराज
पृथ्वीराज
Sandeep Pande
■ काम की बात
■ काम की बात
*Author प्रणय प्रभात*
व्यंग्य क्षणिकाएं
व्यंग्य क्षणिकाएं
Suryakant Dwivedi
वो मेरे दर्द को
वो मेरे दर्द को
Dr fauzia Naseem shad
चल सतगुर के द्वार
चल सतगुर के द्वार
Satish Srijan
भक्ति एक रूप अनेक
भक्ति एक रूप अनेक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पत्नी विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
की है निगाहे - नाज़ ने दिल पे हया की चोट
की है निगाहे - नाज़ ने दिल पे हया की चोट
Sarfaraz Ahmed Aasee
समझ आती नहीं है
समझ आती नहीं है
हिमांशु Kulshrestha
अयाग हूँ मैं
अयाग हूँ मैं
Mamta Rani
ओढ़े  के  भा  पहिने  के, तनिका ना सहूर बा।
ओढ़े के भा पहिने के, तनिका ना सहूर बा।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
2584.पूर्णिका
2584.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
शीत .....
शीत .....
sushil sarna
इंतजार करना है।
इंतजार करना है।
Anil chobisa
Save water ! Without water !
Save water ! Without water !
Buddha Prakash
उसकी गली से गुजरा तो वो हर लम्हा याद आया
उसकी गली से गुजरा तो वो हर लम्हा याद आया
शिव प्रताप लोधी
Loading...