” आज तुमको क्या हुआ है ” !!
दरकते दर्प से रिश्ते ,
हमेशा मुंह चिढ़ाते हैं !
हों डूबे भावना में जब ,
कुछ कह न पाते हैं !
बहके बहके से अधर हैं ,
आज क्यों सिमटी हया है !!
सिसकती सांस है जैसे ,
पैमाना भरा सा है !
नहीं लज़्ज़ा है आँखों में ,
ज़ख्म भी वो हरा सा है !
खोया खोया कहीं है मन ,
आज क्यों बदली हवा है !!
पराजित हो गये जैसे ,
सभी संस्कार अपने हैं !
कहीं तुम टूट कर बिखरे ,
कहीं छूटे वे अपने हैं !
नहीं है ठौर संयम का ,
वक़्त ये करता बयां है !!