“आज कि शिक्षण प्रणाली”
कया वो भी दीन थे,
जब मै स्कूल जाता था.
अपनी ही मस्ती मे,
स्कूल पोहच जाता था…
दोही कीताबे रहते थे,
एक ही बुक मे सब लिखता था.
कीताबो से जादा हमे,
मैदानी खेल रहता था…
मेरे किताबे मेरे बाद,
मेरे भाई बहन यूज करते थे.
और भाई बहन ना रहे तो,
आधि किंमत मे बेच देते थे…
तब पडणे के लीए,
कितना कम खर्चा आता था.
हर घर का गरिब से गरिब,
बच्चा तब पड सकता था…
आज मै अपने बच्चो को देखता हु,
उनसे जादा वेट उनके बस्ते का होता है.
उनके उमर से जादा,
उनके कीताबे होते है…
हर साल उनकी कीताबे,
नई लेणी पडती है.
और उनकी पुरानी कीताबो को,
कचरे मे फेकनी पडती है…
अब तो शिक्षण सिर्फ,
नाम का हो गया है.
शिक्षण के नाम पर तो अब,
सिर्फ लूट ही लूट मची है…