आज उन पन्नों को पलट रही हूं क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
सोने की चिड़िया पर थी निगाहें किसी की
ख़ामोशी बन गयी हमदर्द. हर लम्हे की
कुछ कदमो तक सहते रहे है हम
लेकिन होली भी खेली हमने हर दर्द की
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो. आज आपको सुना रही हूँ ।
हर पल के लिए खामोश थे हम
लेकिन साथी हमारा कलम कहाँ चुप रहने वाला
उनके जुल्मो को देखकर कदम ठहरे थे
लेकिन साथी कहा रुकने वाला
कलम का असर होने लगा हर किसी में
पूरी कायनात ग्वाह थी हर एक खून के कतरे की
लेकिन ये हाथ कहा सुनने वाला
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
मिट्टी के जान गवा दिया हमने
हर सास को इस लिए लूट दिया हमने
कि खत्म हो जाएगी गुलामी हमेशा के लिए
ये प्रण ले लिया था हमने
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो आज आपको सुना रही हूँ ।
इस धरती पर पड़े कदम जानते थे
आबाद करना है इस मुल्क को
वो अंग्रेजो को खिलाफ मानते थे
बारे हालात हुए,पर कहाँ रुकी हमारी लेखनी
पन्नो पर बोलते अल्फाज़ ये सब जानते थे ।
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
उनका जोर कितना था देख लिया हमने
थोड़े थे कच्चे खिलाडी, लेकिन पकड़ बना लिया हमने
सालाखो के पीछे जाने को थे,मजबूर हम
लेकिन कलम का साथ छोड़ा न हमने
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
आक्रोश था हमारी आखो में
गम था उन अश्को देखकर, हमारे जहन में
कलम की दोस्ती अमर हो गयी
लो कर दिया आजाद हमने, हमारी दुआ कुबूल हो गयी
आज उन पन्नों को पलट रही हूं
क्या कहते है वो, आज आपको सुना रही हूँ ।
अब खुशी से भरे लम्हे हैं
कल तो भूले आप भी नही है
तस्वीर बदल गयी है दुनिया की
लेकिन वो कलम आज भी वही है ।