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30 Oct 2016 · 1 min read

आज अरमानो को टूटते हुए देखा/मंदीप

आज अरमानो को टूटते हुए देखा,
किसी को आज हाथ छोड़ते हुए देखा।

कितनी भी वफाई कर लो वफ़ा से,
आज बेवफ़ा को दूर जाते हुए देखा।

बनाता ख्वाब दिल मेरा रातो को,
उन ख्वाबो को सुबह होते ही टूटते देखा।

था नही यकीन ऐसा होगा कभी,
आज वो सब आँखो ने होते हुए देखा।

कितना दर्द था उस को आज ये कौन जाने,
आज बरी महफ़िल में उस दीवाने को रोते हुए देखा।

था यकीन जिस पर हद से ज्यादा,
आज उस को गैरो की तरह जाते हुए देखा।

बैठा था कोइ अनजान जगह ,
उस जगह कोई आँसू गिरते हुए देखा।

जहाँ मिलती थी रुस्वाई हर बार,
आज किसी को उसी जगह जाते हुए देखा।

जीता था जो सान से हर पल को,
आज उस को पल पल मरते हुए देखा

चलता था जो अकड़ कर “मंदीप”
आज उस को अंदर से टूटते हुए देखा।

मंदीपसाई

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