आज़माते है मियाँ
किसी की सूरत पे नहीं जाते हैं मियाँ
हम तो किरदार को आज़माते है मियाँ
मेरे ग़म का अंदाज़ा नहीं लगा पाओगे
हम तो हर हाल में मुस्कुराते हैं मियाँ
कैसे इनकार करोगे भला पीने से तुम
सुना है वो आँखों से पिलाते हैं मियाँ
तुम्हारी बात पे ऐतबार मैं कर तो लूँ
मगर लोग कह के मुकर जाते हैं मियाँ
शीशा ए दिल की फिर औक़ात क्या है ‘अर्श’
पत्थर भी टूट के बिखर जाते हैं मियाँ