आजकल की मोहब्बतें
काना मुझे भाये नहीं
काने बिना मुझे चैन नहीं
आजकल की मोहब्बत कुछ ऐसी ही हो चली है
जिससे मोहब्बत उसी को दरकिनार करना
उसी को सारी ज़िल्लतें देना
फिर एक दिन रिश्ता ही दाँव पे लगा देना
फिर इन्तिज़ार करना उसके झुकने का
फिर झुकने के बाद उसके
ये कहना की
झुके / झुकी तुम तुम तो ये ज़रूरत तुम्हारी थी
और फ़िर से वही ज़िल्लतों का खेल शुरू करना,
चाहें तो हम सब सुकून की एक ज़िन्दगी बिता सकते हैं
लेकिन हम उलट करके सब अमन खुद ही ख़तम
करते जा रहे ,
थोड़ा सा समझने की ज़रूरत है
प्यार में ये तेरा मेरा नहीं होता ,
कोई छोटा बड़ा नहीं होता ,
कोई झुके लेकिन अगले का फ़र्ज़ है
उसे झुकने से पहले थाम लेना –
उसे झुकने से पहले थाम लेना |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’