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12 Nov 2017 · 1 min read

आग ये अपनों की लगाई है

आग ये अपनों की लगाई है
ये तभी बुझ कभी न पाई है

है ख़ज़ाने हमारे सब खाली
हमने इज़्ज़त ही बस कमाई है

आज लड़कर उन्होंने यूँ हमसे
ताली इक हाथ से बजाई है

साथ अब तो निभाना ही होगा
गम से जब हो गई सगाई है

फ़र्ज़ अब तो निभाती बेटी भी
मत कहो बोझ है, पराई है

दिल की कड़वाहटें मिटाने की
सिर्फ ये प्यार ही दवाई है

इस तिरंगे में ही लिपटने को
जान वीरों ने हँस गँवाई है

साँस लेना हुआ बड़ा मुश्किल
धुंध चारों तरफ ही छाई है

‘अर्चना’ फ़र्क़ सारे मिट जाते
आखिरी होती जब विदाई है

डॉ अर्चना गुप्ता

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