Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jul 2021 · 6 min read

आखिर मां है…

“अरी गुलबिया जरा जल्दी हाथ चला ना। बस धीरे-धीरे रेंगते हुए काम करती रहेगी। ये नहीं कि सूरज सर पर आ गया है जल्दी से आंगन बुहार लूं। रूक तेरे लिए चाय बनाती हूं तभी तेरी बेट्री चार्ज होगी” मधु जी ने चहकते हुए कहा।

“क्या बात है बीबीजी आज तो आप बड़ी ही खुश लग रही है बिना कहे मेरे लिए चाय बना दी। आज कुछ ख़ास है क्या”कमर पर पल्लू बांधे गुलबिया ने आंखें टमकाते हुए बोली।

“मेरे बच्चे आ रहे हैं। विकास को बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली है इस बार अब बस तू जल्दी-जल्दी हाथ चला और सारा काम निपटा लें।

सुन वो लाल फूल वाले पर्दे लगा देना और ऊपर वाला कमरा अच्छे से साफ करना। अब इतने लंबे समय बाद मेरा बेटा घर आ रहा हैं कम से कम 1-2 महीने तो रूकेगा ही “मधु जी बोल रही थी कि इतने में उनके पति रमेशचंद्र जी जो हाल में ही अखबार पढ़ रहे थे उन्होंने पेपर की आवाज की।

न जाने वो उस आवाज में कुछ कहना चाहते हैं।

“बीबीजी लड्डू की तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही है एकदम देसी घी महक रहा है “गुलबिया चाय का प्याला लिए मधु जी को लड्डू बनाते हुए देखकर बोली।

“हां मेरे विकु को बहुत पसंद है। बचपन से उसकी पसंदीदा मिठाई है देखते ही खुश हो जाएगा ”

“पर आपका पोता ये लड्डू और नहीं खाएगा वहां परदेस में उसे ये सब कहां मिलता है। उसके लिए क्या बनाओगी दादीजी “गुलाबिया मधु जी को छेड़ते हुए बोली।

“हट पगली मैं तो उसके लिए वो क्या बोलते हैं केक बनाऊंगी कल ही मैंने रेसिपी देखी है। हां उसकी मां जैसी नहीं पर कोशिश तो जरूर करूंगी मेरे लाडले के लिए। मेरा छोटा सा लाडला आएगा तो उसे खूब प्यार करूंगी। उसके साथ अंग्रेजी में चटर-पटर करूंगी। बहू के साथ रहकर उससे भी थोड़ा बहुत इंग्लिश-विंग्लिश सीखूंगी। वहां के तौर-तरीके सीखूंगी। उसे अपने गांव ले जाऊंगी और खूब सारी बातें करूंगी। तू देखना एक बार विकू यहां अपने देस आ जाएगा न तो लंबे समय के लिए वो परदेस भूल ही जाएगा “मधु जी चहकते हुए बोल रही थी।

मधु की बातें सुनकर रमेशचंद्र जी को बहुत अफसोस हो रहा था क्योंकि वो जानते थे कि मधु बस अपने कल्पना के घोड़े दौड़ा रही है। वो मन ही मन दु:खी भी थे कि मधु अपने बेटे-बहू पोते के साथ रहने के इतने सपने देख रही है न जाने कब उसकी अचानक आंख खुलेगी और वो सब सपने जिन्हें वह संजो रही है धूमिल हो जाएंगे। मधु फिर से टूट जाएगी।

चार साल पहले भी तो यहीं हुआ था जब विकी ने अपने विदेश में नौकरी की बात कहीं और जल्द लौटने का आश्वासन दिया था। पर दिन गुजरते गए विकी आज-कल पर टालता गया और वहीं आफिस की लड़की के साथ ब्याह रचा लिया और कहने को सेटल हो गया।

उस समय मधु के मन पर बहुत आघात लगा था। वो जिस बेटे की शादी सुव्यवस्थित गृहस्थी के लिए बचपन से सपने देख रही थी वह सब टूट गए। दिल छलनी हो गया।

“तू विकी अब यहीं सेट हो जा। गांव की जमीन को बेचकर तू जो चाहे काम शुरू कर दें पर हमें छोड़कर विदेश मत बसने जा “रमेशचंद्र जी ने जब यह बात कहीं तो विकी गुस्से से आग-बबूला हो गया।

“मैं बस सारी जिंदगी अपनी ख्वाहिशों को मार दूं। यहां रखा ही क्या है?और फिर महीना तो भेजता रहूंगा …”विकी के मुंह से आखिरी शब्द सुनकर रमेशचंद्र जी चुप हो गए थे।

उन्होंने अपने मन को समझा लिया कि इंसान को कभी भी किसी से उम्मीद नहीं लगानी चाहिए चाहे वह बेटा ही क्यों न हो। वह समय-समय पर यथासंभव पत्नी को भी समझाते। पर मां का दिल माने तब ना….। मुझे ही समझाती कि अब उसकी पत्नी वहीं रहना चाहती है आप बेकार में मेरे बेटे को दोष देते हो।

बड़ी ही सफाई से अपने बेटे की हर बात पर मधू आसानी से पर्दा डाल देती थी आखिर मां जो थी।

“आ गया मेरा विकी गुलाबिया जल्दी से गाड़ी से सामान लेकर कमरे में रख आ। अरे अरे मेरा अंशु तो कितना बड़ा हो गया। पर तू कमजोर सा लग रहा है। अब दादू-दादी के साथ रहेगा न कुछ महीने तो खूब लाड़-प्यार मिलेगा “बेटे-बहू पोते को देखकर मधु फूली नहीं समा रही थी।

अंश के नन्हे हाथों को देखकर बार-बार उसे चूम रही थी। उसे अपने हाथों से खिलाना चाहती थी।

पिछले दो दिनों में मधु जी ने हर पल सहर्ष जीया है। उसके चेहरे पर चमक थी। उनकी बहू थी तो हिन्दुस्तानी पर पढ़ाई-नौकरी के चक्कर में सालों से विदेश में थी। उसकी टूटी-फूटी हिंदी को सुनकर मधु जी उसकी कायल हो रही थी। बड़े चाव से उसकी बातें सुन रही थी।
वो न जाने कब से इस पल का इंतजार कर रही थी कि मैं सास बनकर अपनी बहू पर असीम प्यार लुटाऊं। तरह-तरह के पकवान बनाकर खिलाना ढ़ेरों बातें यह सब मधु जी करना चाहती थी।

“मां हम आज शाम को ही निकल रहे हैं। हमारी फ्लाइट है सात बजे की। तो अपने हाथ का कुछ सूखा नाश्ता हमें डाल देना और हां वो मठरी जरूर बनाना “विकी ने फोन पर गेम्स खेलते हुए कहा।

मधु जी को मानों गहरा धक्का लगा। उन्हेंं यह उम्मीद नहीं थी कि बेटा 2 दिन भी उनके पास नहीं रूकेगा।

“बेटा….इतनी…जल्दी….”भरे स्वर में मधु जी ने पूछा।

मधु जी की चेहरे की सारी चमक-दमक फीकी पड़ गई।

“हां मां…आगे हमें वेकेशन के लिए जाना है। आपके बहू और पोता दोनों की इच्छा है। बस आपने जिद की थी तो हम मिलने आ गए इससे अधिक और कुछ मत कहना”विकी ने एकटुक जवाब दिया।

मधु जी को सहसा आघात लगा। वो कमरे के एक कोने में बैठ गई।

“देख लिया मैंने तो पहले ही कहा था कि इतने सपने मत देखो कि बाद में पछताना पड़े। 1-2 महीने का सोच रही थी अरे ये हफ्ता भी निकाल लें तो बहुत बड़ी बात है बेटा आ रहा है ये करूं वो करूं “रमेशचंद्र जी गुस्से में बोलें।

“आप शांत रहिए बहू सुन लेगी। अंश भी डर जाएगा आप अपना अखबार पढ़िए “रूदन स्वर में मधु जी ने कहा और शाम की तैयारी करने लग गई।

“बाय दादू-दादी “अंश ने गले लगकर कहा।

मधु जी ने उसे कसकर सीने से लगा लिया। न जाने कब ये बांहे ये शब्द वह दुबारा सुन पाएगी। उसे जी भर कर प्यार करना चाहती थी पर अपनी कोख (बेटे)के आगे हर मां को चुप रहना पड़ता है।

कार को अंत तक देख रही थी और हाथ हिलाकर बाय कर रही थी पोते को। मधु जी का हृदय भर आया। न जाने कितनी बातें कितनी चीजें अधूरी रह गई थी।

मधु जी का हृदय विलाप कर रहा था। बस वह पति के सामने सामान्य व्यवहार करने की कोशिश कर रही थी।

“मना किया था न कि इतनी तैयारियां मत करों बेटे-बहू के साथ रहने के ख्वाब मत देखो। अब देखा 2 दिन में ही मुंह फेरकर चला गया न। अब बैठकर टेसुएं बहाओं” रमेशचन्द्र जी गुस्से में भले ही कहा पर अपनी पत्नी की यह स्थिति उनसे भी नहीं देखी जा रही थी।

“वो बहू और अंश का मन था। विकी की कोई गलती नहीं वो मजबूर है….”कहते हुए मधु जी का गला भर आया। आंखों ने आंसूओं को पनाह नहीं दी और आंसू झर-झर बहने लगे।

वो पति के कंधे पर सर रखकर रोने लगी। वो जानती थी कि उनके पति सही कहते हैं पर वो भी क्या करें आखिर मां है वो भी मजबूर हैं अपने बच्चों पर असीम प्यार लुटाने के लिए उनकी गलतियों को नजरंदाज करने के लिए उनके लिए सब कुछ कर गुजरने के लिए। बच्चें भले ही मुंह फेर ले पर मां नहीं फेर सकती। वो तो हर पल ममता न्यौछावर करती रहती है।

आखिर है तो मां ही…

रमेशचंद्र जी का भी पत्नी को देखकर मन भर आया गाल से आंसू लुढ़कते हुए मधु की हथेलियों पर आ पहुंचे।

2 Likes · 1 Comment · 451 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
gurudeenverma198
मैं खुश हूँ! गौरवान्वित हूँ कि मुझे सच्चाई,अच्छाई और प्रकृति
मैं खुश हूँ! गौरवान्वित हूँ कि मुझे सच्चाई,अच्छाई और प्रकृति
विमला महरिया मौज
मैं तो महज इंसान हूँ
मैं तो महज इंसान हूँ
VINOD CHAUHAN
"आखिर क्यों?"
Dr. Kishan tandon kranti
Ranjeet Kumar Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
पनघट और पगडंडी
पनघट और पगडंडी
Punam Pande
कविता
कविता
Bodhisatva kastooriya
*
*"नमामि देवी नर्मदे"*
Shashi kala vyas
कुछ लोग किरदार ऐसा लाजवाब रखते हैं।
कुछ लोग किरदार ऐसा लाजवाब रखते हैं।
Surinder blackpen
11. एक उम्र
11. एक उम्र
Rajeev Dutta
23/54.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/54.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
छठ परब।
छठ परब।
Acharya Rama Nand Mandal
जब आओगे तुम मिलने
जब आओगे तुम मिलने
Shweta Soni
दस्ताने
दस्ताने
Seema gupta,Alwar
Dr अरूण कुमार शास्त्री
Dr अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सिर्फ व्यवहारिक तौर पर निभाये गए
सिर्फ व्यवहारिक तौर पर निभाये गए
Ragini Kumari
फितरत इंसान की....
फितरत इंसान की....
Tarun Singh Pawar
रोगों से है यदि  मानव तुमको बचना।
रोगों से है यदि मानव तुमको बचना।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
💐प्रेम कौतुक-405💐
💐प्रेम कौतुक-405💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
इस धरा का इस धरा पर सब धरा का धरा रह जाएगा,
इस धरा का इस धरा पर सब धरा का धरा रह जाएगा,
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
अब सच हार जाता है
अब सच हार जाता है
Dr fauzia Naseem shad
इंसानियत
इंसानियत
Neeraj Agarwal
नारी का अस्तित्व
नारी का अस्तित्व
रेखा कापसे
बस यूं ही
बस यूं ही
MSW Sunil SainiCENA
अभिनंदन डॉक्टर (कुंडलिया)
अभिनंदन डॉक्टर (कुंडलिया)
Ravi Prakash
!! हे लोकतंत्र !!
!! हे लोकतंत्र !!
Akash Yadav
Drapetomania
Drapetomania
Vedha Singh
अजीब सी चुभन है दिल में
अजीब सी चुभन है दिल में
हिमांशु Kulshrestha
कौन सोचता....
कौन सोचता....
डॉ.सीमा अग्रवाल
कोई इंसान अगर चेहरे से खूबसूरत है
कोई इंसान अगर चेहरे से खूबसूरत है
ruby kumari
Loading...