आखिरी सफ़र (ग़ज़ल)
कैसी ख़ुशी ,कैसा गम ,हो चाहे कैसी भी डगर,
कज़ा आई और ख़ामोशी से किया आखिरी सफ़र|
लाये क्या थे अपने साथ ,खाली थे हाथ अपने,
अब जा रहे है जहाँ से सब कुछ यहीं छोड़कर|
जिस जिस्म पर गुरुर किया था,उसका हाल देखो,
बेजान सा,बेज़ार सा ख़ाक को हो रहा है नज़र|
कौन रफीक,कौन रकीब ,सब जीतेजी के झगडे हैं,
कौन जाने ,कब किसका बुलावा जाये,क्या खबर?
हकीक़त है यह जहाँ है बहुत खुबसूरत ख़्वाब गाह,
और इस खुबसूरत ख़्वाबगाह में कब्रगाह भी है मगर|