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25 Nov 2016 · 1 min read

आखिरी दम तलक नहीं बुझती

आखिरी दम तलक नहीं बुझती
हवस मेरी सुलह नहीं करती

जब से जन्मा हूँ बटोरता ही रहा
संग्रह की प्रवृति नहीं मिटती

अगली पीढ़ी नकारा ही होगी
मन से शंका ये क्यूं नहीं मिटती

लोग ईमान तलक बेच रहे
प्रेम रस की दुकां नहीं मिलती

ढूंढ ही लेते दोष दूजों में
अपनी गलती मगर नहीं दिखती

मन का शीशा क्यों इतना धुंधला है
असली तस्वीर ही नहीं दिखती

घुल चूका है तनाव रिश्तों में
धूप आँचल से अब नहीं रूकती

प्रदीप तिवारी
9415381880

2 Likes · 1 Comment · 539 Views
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