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5 Feb 2021 · 1 min read

आखर-आखर नाम पे जिसके…

आखर-आखर नाम पे जिसके
गीत मैं नित रचती जाती हूँ
क्या कोई पल ऐसा होता होगा
सुधि उसको मेरी आती होगी

क्या सरल अब भी वह पहले जैसा
या बन गया चट्टान सरीखा
क्या पीर पराई देख आज भी
आँख उसकी भर आती होगी

मेरी आँख का हर आँसू जो
समझ गंगाजल पी लेता था
रिक्तता इन आँखों की अब भी
क्या दिल उसका दहलाती होगी

क्या अब भी भुलक्कड़ है वैसा ही
याद न रखता खुद की ही बातें
भूल गया होगा अब नाम भी मेरा
प्रीत पुरानी याद क्या आती होगी !

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Language: Hindi
6 Likes · 4 Comments · 280 Views
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