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26 Sep 2017 · 5 min read

आक्रोश

मनी भाई की पहली निबंध
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“आक्रोश ”
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“कभी रोष है ,तो कभी जोश है।
मन में उफनता , वो ‘आक्रोश’ है।
मदहोश यह, तो कहीं निर्दोष है।
परदुख से उत्पन्न ‘आक्रोश’ है।”

मानव अपने जन्म से लेकर मृत्युशैय्या तक किसी ना किसी घटनाओं से उद्वेलित होता रहता है।जिसके इर्दगिर्द ही उसके मन में भावनाओं का सागर समय और दशा के अनुरूप उमड़ता रहता है।अपनी भावनाओं को मानव कभी प्रेम, विश्वास, तो कभी शंका,घृणा व आक्रोश आदि कई रूपों में प्रकट करता है । इन सभी भावनाओं में  आक्रोश भाव का महत्वपूर्ण स्थान होता है । अक्सर आक्रोश की उत्पत्ति कार्य की अक्षमता व मनोवांछित कार्य न हो पाने की स्थिति में होता है ।लेकिन कभी कभी अन्याय के खिलाफ विरोध दर्ज करने के लिये प्रयुक्त की जाती है। जिससे परिवर्तन के मार्ग खुलने लगते हैं।

  आक्रोश का सामान्य अर्थों में किसी स्थिति के प्रति उत्तेजना या आवेश व्यक्त करने से होता है।इसके साथ आक्रोश में आवेश के साथ चीख-पुकार या किसी को शापित करना भी शामिल किया जा सकता है।

आज गंभीर प्रश्न यह है कि आक्रोश भाव  अच्छी आदत की श्रेणी में रखा जाय कि बुरी आदत की श्रेणी में रखा जाय।आक्रोश  की परिणाम  स्थिति,समय और आक्रोशी के इरादों से सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आक्रोश का प्रकटीकरण दो रूपों में होता है। एक तो जब आवेश प्रकट करने में आक्रोशी को जोर देना नहीं पड़ता । वह स्वतः स्थिति,स्थान और परिणाम का पूर्वानुमान लगाये बिना प्रकट हो जाता है।जो बाद में किसी की उपेक्षा का शिकार होता है । जिससे मानव जीवन का पतन होने लगता है। इस प्रकार का आक्रोश मानव के दुर्गुण पक्ष को उजागर करता  है और दूसरे प्रकार के आक्रोश प्रकटीकरण मानव अपने दिलोदिमाग से परदुःखकातरता भाव लेकर करता है यह मनुष्य को जिंदादिल इंसानियत की धनी बनाती है। इतिहास में उनका नाम  स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है ; जैसे कि मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकुमत के विरोध में आक्रोश व्यक्त किया था और अंग्रेजी शासन की नींव हिलाकर रख दी थी।

आक्रोश के वशीभूत होकर व्यक्ति अपनी अमूल्य धन को खो देता है जिसका पछतावा उसे जिन्दगी भर होता है। जिस तरह मंथरा ने कैकेयी के मन में ईर्ष्या भरकर क्षण भर के लिए उसके प्रिय पुत्र श्री राम के प्रति आक्रोशित कर दिया था और कैकयी ने श्रीराम को वनवास का आदेश दे दिया था। वैसे “राम वनवास” के पश्चात कैकेयी का मन सबसे अधिक व्यथित हुआ था ।

आक्रोश के बारे में वर्णन करते हुए द्रोपदी की चित्रण करना आवश्यक हो गया है कि उसने किस तरह से पाण्डवों के मन में कौरवों के खिलाफ आक्रोश को अपना हथियार बनाकर अपने प्रति हुए अपमान का प्रतिशोध लिया था।वैसे महाभारत जैसे हर युद्ध के पर्दे के पीछे में किसी एक व्यक्ति विशेष के मन में  उपजे आक्रोश की भावना छुपी रहती है ।

कई महापुरुषों ने आक्रोश पर अपने भिन्न भिन्न विचार प्रस्तुत किये हैं जैसे कीटो का कथन कि “एक आक्रोशित व्यक्ति अपना मुंह खोल देता है और आंख बंद कर लेता है।” इस पर महात्मा गांधी ने भी कहा है “आक्रोश और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं ।” परंतु आक्रोश ने अरस्तू के विचार में कुछ नयापन देखने को मिलता है ।उनका कहना था कि “कोई भी आक्रोशित  हो सकता है- यह आसान है, लेकिन सही व्यक्ति से सही सीमा में सही समय पर और सही उद्देश्य के साथ सही तरीके से आक्रोशित  होना सभी के बस कि बात नहीं है और यह आसान नहीं है.”

जब कभी मनुष्य को उसके सोच के अनुरुप कार्य होता प्रतीत ना हो और उस पर बदलाव लाने के लिए उसका मन उद्धत हो तो मन में आक्रोश भाव की उपज होने लगता है । जब कभी मनुष्य आक्रोशित होता है तो उसकी बुद्धि में आवेग भर जाता है और सही निर्णय कर पाने में अक्षम होता है फलस्वरुप उसकी कार्य की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है ।कभी कभी  बात बात में तिलमिलाना उसके सामाजिक स्थिति  को बिगाड़ने का कार्य करती है । आक्रोश में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालता है । और कभी कभी आक्रोश की लपटें दूसरों को भी अपने चपेट में लेकर भस्म कर सकता  है ।

आज आक्रोश प्रदर्शन का तरीका मात्र व्यक्तिगत न होकर सामुहिक रूप ले रहा है । किसी का विरोध करते हुए एक जनसैलाब जगह-जगह आक्रोश मार्च निकालते हैं । सड़क-जाम करके आवागमन को बाधित करके लोगों के परेशानी को बढ़ाते हैं  । कभी-कभी स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि भीड़ दंगे का रूप ले लेती है ,जिससे देश को जान माल की हानि उठानी पड़ती है । इस प्रकार के आक्रोश प्रदर्शन को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है ।

आक्रोश सहज नैसर्गिक मनोभाव है ।
आक्रोश को विषम दशा में एक सहज अभिव्यक्ति प्रतिक्रिया के रूप में कहा गया है जिससे कि हम अपने ऊपर आरोपों से अपनी सुरक्षा कवच तैयार करते हैं ।
तात्पर्य यह है कि अपनी वजूद की रक्षा के लिए आक्रोश भी जरुरी होता है ।आक्रोशित व्यक्ति का समाज में  स्थान क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित करता है।हर बुराईयों पर अपना विरोध प्रकट करता है।

आज के युग को  व्यग्रता का युग कहा जाने लगा है।आक्रोश के वक्त दैहिक  स्तर पर हृदय की स्पंदन बढ़कर रक्तचाप बढ़ने लगता है ।इस प्रकार की घटना मानव के लिए हर तरह से हानिप्रद है ।अतः इस पर नियंत्रण नितांत आवश्यक है । आक्रोश व्यक्त करना धैर्य क्षमता की कमी का संकेतक है । आज जीवनशैली तनाव ग्रस्त हो गई है। विलासिता की युग में सभी के मस्तिष्क पर बाजारीकरण हावी होने लगा है । लंबे समय तक कार्य और अनियंत्रित जीवनशैली से मानव में चिड़चिड़ापन आने लगी है ।अकेलापन में आदमी अपनी भावना दुसरों को प्रकट न कर पाने से आक्रोशित होने लगता है । हिंसात्मक बयानबाजी सुनकर और टीवी शो व मूवी देखकर युवा असंवेदनशील होने लगे हैं। जिससे युवाओं  में  आक्रोश बढ़ता जाता है ।

वैसे आक्रोश के मूल कारणों को समझे बिना यह बताना मुश्किल है कि आक्रोश का दमन और निदान कैसे संभव है? पर यथासंभव प्रयास यह की जानी चाहिए  कि जिससे हम पर आक्रोश की भावना हावी न होने पाये।किसी पर अति अपेक्षा करने से भी बचना   चाहिए, नहीं तो इच्छा के अनुरूप काम न होने से मन में आक्रोश सवार होने लगता है । अति आक्रोश से बचने हेतु धैर्य,ध्यान और विश्राम  का सहारा लेने का प्रयास करनी चाहिए।

“आक्रोश संघर्ष का बिगुल है।
आक्रोश खिलाफत का मूल है।
आक्रोश युवाओं का  शक्ति है।
विरोध, स्वर का अनुपम युक्ति है।”
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✒ निबंधकार :-
मनीलाल पटेल “मनीभाई ”
भौंरादादर बसना महासमुंद ( छग )
Contact : 7746075884
Mlptl281086@gmail.com
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Language: Hindi
Tag: लेख
654 Views
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