आओ करें भारत का नव निर्माण
आओ लेकर हाथों में हाथ
चलते हैं हम साथ साथ
उन राहों पर जिनसे गुजर कर
पहुँचें उस लोक में
जहाँ न हो ईर्ष्या-द्वेष
न हों व्यर्थ के क्लेश
जहाँ न हो राज सत्ता-
देश प्रदेश।
न हो विस्तारबाद और लूट
न हो कुटिल राज मद कूट
नहीं शासक हों निर्बुद्ध
नहीं हों संहारक युद्ध
हो नहीं प्रतियोगिता
केवल हो प्रतिबद्धता
मानवता की रक्षा की
लोक कल्याणकी।
वहाँ नहीं होंगे दुख
बस होंगे सुख ही सुख
अगर होगी मनों में सहजता
नहीं होगी हठधर्मिता
न होगी व्यापारिक वृत्ति
न छलने की प्रवृत्ति
नहीं है धरा पर ऐसा स्थान-
है यह कोरी कल्पना
आओ करें अपने ही भारत का-
नव निर्माण
करें मूल्यों की अवस्थापना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा