Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Apr 2019 · 2 min read

आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के शिकार से !

आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के शिकार से
ऊधडी हुई खालों में सिसकती बयार से.

गलती हुई खालों से उठती, अजीब सी सड़ाँध से
आइये हम मिलते हैं तेज़ाब के नाज़ुक शिकार से.

नाम दिया था माँ ने ‘काजल’ बचपन में प्यार से
कहती थी बिटिया झुकना न कभी अत्याचार से.

फूलों सी नाजुक़ वो,भोर कि दूधिया सी आँच है
हिरनी जैसी चालों वाली लड़की वो साँच है .

हांथो में किताब मन में अजब सा आत्मविश्वास है
देखने में लगती है, गुलाब की कली कोई ख़ास है.

माँ से लिपट कह रही थी, हंसी – ठिठोली में
पढ़-लिख कर नाम करुँगी, बैठूंगी न डोली में.

मुड़ के देखा पीछे तो अजब सा दृश्य साकार था
चार भेड़िये खड़े थे जिनपे स्वयं कामदेव सवार था.

भय से कांप गई, दुष्टों की मनसा को पल में भांप गई
अज़नबी बाँहों को, कांपते होठों के कुत्सा से नाप गई.

अपने ही घर में अजनबियों को विरोध से चाप गई
मान तो बचा लिया, हार गई बस तेज़ाब के ताप से.

शरीर के अदना से हिस्से के कलुषित ब्यभिचार से
कली से काजल की कोठरी बनी बस एक ही वार से.

अब दहक रही है, धधक रही है, पिघल रही है वो
भेड़ियों के हाथों के तेज़ाब की आग में जल रही है वो.

चीख कर रह गई, छटपटाई जलते पतंगे के समान वो
गिर पड़ी थी जमीन पर, जलती लकड़ी के समान वो.

जुट गई थी भीड़ सब के लब पे एक ही सवाल था
था कौन, कौन दरिंदों का ऐसा अपघाती दलाल था.

हर किसी के लब पे बस प्रतिशोध पर बबाल है
देखिये तो लड़की की जिंदगी अब कैसे मुहाल है.

आईये अब मिलते हैं ‘काजल’ के अनकहे सवालों से
उठती हुई आहों से दिल के उबलते हुये छालों से.

देह कि चाह थी तो, देह को ही क्यूँ जलाया
नाज़ुक सी कली को मोम जैसा क्यूँ गलाया.

चाहते थे तुम मुझको, चलो इसका भी विश्वास है
अब मुझको भी तुम्हारे सच्चे प्रेम की ही आश है.

अब आग सी लगी है बदन के बाज़ार में
दुर्गंध भी उठ रही है गुलाबी दरबार से.

प्रेम के फूल से अब तुम मुझको जरा सहलाओ तो
दर्द और जलन को प्रेम के गंगा जल से नहलाओ तो.

आओ-आओ अपना पहले जैसा प्रेम ही बरसाओ
सड़ती-ग़लती देह पर कामवासना ही दरसाओ.

मुँह मत फेरो, आँख भी न चुराओ तुम
सज़ा के डर से यूँ भाग मत जाओ तुम.

माफ़ भी करुँगी तुमको, दिल को साफ़ भी करुँगी मैं
अब सदा-सदा के लिए, तुम्हारा ही हाँथ भी धरूंगी मैं.

पर रुको ज़रा, आँख खोलके,आँख तो मिलाओ
आँख मिला के जरा एक बात तो बताते जाओ.

हमारे प्रेम के मिलन से बेटी गर हुई तो
चलती-फिरती फूल की डाली गर हुई तो.

अपने जैसे प्रेमियों के चाह से उसे कैसे बचाओगे
आह…बोलो तो तेज़ाब के आग से कैसे बचाओगे…?

***
22-04-2019

सिद्धार्थ

Language: Hindi
5 Likes · 2 Comments · 393 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-547💐
💐प्रेम कौतुक-547💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पिया मिलन की आस
पिया मिलन की आस
Dr. Girish Chandra Agarwal
“मत लड़, ऐ मुसाफिर”
“मत लड़, ऐ मुसाफिर”
पंकज कुमार कर्ण
अभिरुचि
अभिरुचि
Shyam Sundar Subramanian
"रातरानी"
Ekta chitrangini
थक गये है हम......ख़ुद से
थक गये है हम......ख़ुद से
shabina. Naaz
तार दिल के टूटते हैं, क्या करूँ मैं
तार दिल के टूटते हैं, क्या करूँ मैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
#क़तआ (मुक्तक)
#क़तआ (मुक्तक)
*Author प्रणय प्रभात*
"रंग का मोल"
Dr. Kishan tandon kranti
हमेशा..!!
हमेशा..!!
'अशांत' शेखर
प्यार
प्यार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उसकी दहलीज पर
उसकी दहलीज पर
Satish Srijan
"चंदा मामा, चंदा मामा"
राकेश चौरसिया
जब ये ख्वाहिशें बढ़ गई।
जब ये ख्वाहिशें बढ़ गई।
Taj Mohammad
हासिल न कर सको
हासिल न कर सको
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हर बार धोखे से धोखे के लिये हम तैयार है
हर बार धोखे से धोखे के लिये हम तैयार है
manisha
लुगाई पाकिस्तानी रे
लुगाई पाकिस्तानी रे
gurudeenverma198
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
Swara Kumari arya
*सवाल*
*सवाल*
Naushaba Suriya
बातें नहीं, काम बड़े करिए, क्योंकि लोग सुनते कम और देखते ज्य
बातें नहीं, काम बड़े करिए, क्योंकि लोग सुनते कम और देखते ज्य
Dr. Pradeep Kumar Sharma
20. सादा
20. सादा
Rajeev Dutta
*पीड़ा हिंदू को हुई ,बाँटा हिंदुस्तान (कुंडलिया)*
*पीड़ा हिंदू को हुई ,बाँटा हिंदुस्तान (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
रास्ते है बड़े उलझे-उलझे
रास्ते है बड़े उलझे-उलझे
Buddha Prakash
* खिल उठती चंपा *
* खिल उठती चंपा *
surenderpal vaidya
*फूलों मे रह;कर क्या करना*
*फूलों मे रह;कर क्या करना*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मेरी परछाई बस मेरी निकली
मेरी परछाई बस मेरी निकली
Dr fauzia Naseem shad
-- ग़दर 2 --
-- ग़दर 2 --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
तुम बिन आवे ना मोय निंदिया
तुम बिन आवे ना मोय निंदिया
Ram Krishan Rastogi
सर सरिता सागर
सर सरिता सागर
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
कहीं फूलों के किस्से हैं कहीं काँटों के किस्से हैं
कहीं फूलों के किस्से हैं कहीं काँटों के किस्से हैं
Mahendra Narayan
Loading...