आइये आग़ोश में अब
वह्र :- 2122 2122 2122 212
अपने दिल की बात को अब यूँ दफ़न मत कीजिए।
जो लवों से कह न पाओ बस इशारा दीजिए।।
आइये आग़ोश में अब तोड़कर शरम-ओ-हया।
ज़िन्दगी की हर फ़िजा का अब मज़ा ले लीजिए।।
ये अ़दा मद़होश करती देखकर छुपना तेरा।
अब क़फ़स को तोड़कर आज़ाद उड़ लीजिए।।
दीजिये म़ौका मुझे एक पल में जीलूँ ज़िन्दगी।
खोलिये इन गेसुओं को और फ़ना कर दीजिए।।
ये तेरा मिलकर बिछड़ना अब गव़ारा है नही।
‘कल्प’ को अपना बना लो मत जुद़ा अब कीजिए।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’