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25 Feb 2021 · 2 min read

आंदोलन मेरी नियति!

आंदोलन मेरे भाग्य में,
आंदोलन ही मेरी नियति,
इसका हुआ आभास मुझे,
जब बन गई ये परिस्थिति,

बात यह सतान्वे अठ्ठानवे की,
जब जिला प्रशासन ने,
वह नदी पट्टे पर दे दी,
जो हमारे घर आंगन के,
एवं खेत खलिहानों के,
आगे बहती है,

आस पास के वासियों ने,
आपत्ति इस पर जता दी,
बोल्डर पत्थर ये तोड़ेंगे,
करके चुगान दाना भी नहीं छोड़ेंगे,
नदी का बहाव बदल जाएगा,
बना हुआ तटबंध टूट जाएगा,

यह काम हम होने नहीं देंगे,
मिल कर इसका विरोध करेंगे,
ग्राम प्रधान को बताया गया,
उन्हें बैठक के लिए बुलाया गया,
उनसे उनकी राय मांगी,
अपनी राय उन्हें बता दी,

प्रधान जी ने भी सहमति में सिर हिलाया,
अपना समर्थन हमें जताया,
विरोध पत्र तैयार किया,
जिला प्रशासन तक भेज दिया,
पट्टेदार को मना किया,
गाड़ियों को वापस किया,
आने जाने वाले मार्ग को अवरूद्ध किया,

अब प्रशासन का दबाव बढ़ने लगा,
साथियों को डर लगने लगा,
पुलिस प्रशासन का कैसे सामना करें,
नदी के चुगान को कैसे रोकें,
विधायक, और मंत्री से मिले,
काम को रोकने को कहने लगे,
उन्होंने प्रशासन से संवाद किया,
प्रशासन ने भी,
राजस्व बढ़ाने का दांव चला,

हमने भी हार ना मानी,
मिलने को गये नित्यानंद स्वामी,
वह विधान परिषद के अध्यक्ष हुआ करते थे,
अक्सर लखनऊ में रहा करते थे,
घर देहरादून में आए हुए थे,
सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे,
उन्हें अपनी पीडा बताई,
प्रशासन दिखा रहा दबंगाई,

हमारे खेत खलिहानों का सवाल है,
घर आंगन उजड़ने का मलाल है,
जनहित का यह तिरस्कार उचित नहीं है
जनता का उत्पीडन ठीक नहीं है,
या तो यह काम रोक लो,
या फिर हमें कहीं विस्थापित कर दो,
हम यहां पर कैसे रहेंगे,
क्या करेंगे क्या कमाएंगे,
क्या हम अपने बच्चों को खिलाएंगे,

स्वामी जी सरल सहज व्यक्ति थे,
वह हमसे सहमत हो गए थे,
उन्होंने जिला अधिकारी को आदेश कर दिया,
इस चुगान कार्य को निरस्त करने को कह दिया,
आदेश की प्रति भेजने को लिख दिया,
इस तरह से यह समस्या सुलझ पाई,
आंदोलन ही हमारी नियति है भाई।

(यादों के झरोखे से)

Language: Hindi
1 Like · 276 Views
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