आंखों का सरारा लेकर
मैं जब भी निकली दो आंखों का शरारा लेकर
तुम राह में ही मिले प्यार का गुब्बारा लेकर
मैं जानती नही तुमको, तुम मिले भी नहीं मुझ से
मिले बिना ही बिछड़ते रहे दिल आवारा लेकर
कब कहा मैंने तुम भी वस्ल की आग में ही जलो
गुजरते रहो बस आंखों से, प्यार का फ़व्वारा लेकर
~ सिद्धार्थ