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12 Oct 2017 · 1 min read

“आँसू”

“आँसू”
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(1)
दर्द से रिश्ता बनाना आ गया !
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
आँख में आँसू छिपाना आ गया !
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
नफरतों को आज सारी भूल कर ,
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उल्फ़तों के गीत गाना आ गया !
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(2)
ग़म भरे आँसू छिपाते हम रहे !
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ख़्वाब इस दिल में सजाते हम रहे !
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ग़र्दिशों ने लाख चाहा रोकना ,
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दिलनशीं नग़मे सुनाते हम रहे !
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(3)
आँख से आँसू गिराता भी नहीँ !
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
ज़ख्म दिल के पर दिखाता भी नहीँ !
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
गर्दिशों की मार जब पड़ने लगे ,
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
आदमी को कुछ लुभाता भी नहीं !
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
(9034376051)

Language: Hindi
276 Views
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