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2 Nov 2016 · 1 min read

आँसू दो चार लिखने हैं।

गीतिका

अभी भारत की’ छाती पर कई उद्गार लिखने हैं।
हृदय की टीस के आँसू हमें दो चार लिखने हैं।

कभी मतभेद का ये युध्द मानव का नहीं थमता।
इसी के बीच सामाजस्य के उपहार लिखने हैं।

खडी दीवार नफरत की मगर दो प्रेम के अक्षर।
कभी इस पार लिखने हैं कभी उर पार लिखने हैं।

हुई है खंडहर एकत्व की प्राचीर मानव की।
कलम ले स्वप्न सुषमा के हमें साकार लिखने हैं।

कभी भी मौन रहकर हक भला कब कब मिला हमको।
हमें अब क्रांति के हाथों स्वयं अधिकार लिखने हैं।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)

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