Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Feb 2017 · 5 min read

“आँचल के शूल”

आँचल के शूल हमेशा की तरह आज भी सौतन बनी घड़ी ने सनम के आगोश में मुझे पाकर मुँह चिढ़ाते हुए दस्तक दी । मैॆं अनमने मन से उठने ही वाली थी कि बाहों के घेरे से छनकर निकला स्नेह अनुरोध सुनाई पड़ा-“अभी हॉस्पिटल चलने में समय है,थोड़ा आराम कर लो…बाद में तुम्हारा वात्सल्य हमें एक नहीं होने देगा।” मैं खिलखिला कर मुस्कुरा दी। कोहरे की गहनता में रुई से छितराए बादलों की मोहक छवि निहार कर मैंने उम्मीद के पंख सजा नए दिन की शुुरुआत की और पुत्र की चाहत में भगवती की आराधना में जुट गई। एकाएक सन्नाटे को भेदती हुई आहत चींख सुनाई पड़ी- “अम्मा…अम्मा, हमें छोड़ कर ना जाओ।” मैं दौड़ कर पास के वृद्धाश्रम में गई, जिसकी बेजान बूढ़ी इमारत में सर्वत्र नेह को तरसते वृद्धों के नयन बेतावी से टकटकी लगाए अपनों के आने की बाट जोह रहे थे।चेहरे पर पड़ी झुर्रियों सी सलवटों वाले पर्दे को हटा कर मैं कमरे के भीतर गई और रो-रो कर बेहाल कमली को ज़मीन से उठा कर अपने सीने से लगा लिया। चारों ओर से घूरती दीवारें उसकी लाचारी का उपहास उड़ाती नज़र आ रही थीं। खटिया के पास लुढ़की सुराई चिल्ला-चिल्लाकर एकाकीपन की करुण कथा सुना रही थी।
मैं हिम्मत जुटा कर अम्मा की बेजान खटिया की ओर बढ़ी।बुझे हुए दीपक की काली लौ सी अम्मा की ठहरी आँखें एकटक मुझे घूरती सी नज़र आईं।मैंने पास जा कर उनकी आँखेंं बंद कीं और सिरहाने रखी उनकी बूढ़ी जीवन संगिनी डायरी को उठा लिया जो उनके हर पल की गवाह बनी आज अपने अकेलेपन पर आँसू बहा रही थी।मैंने कमरे की खिड़की खोली और आगंतुक के इंतज़ार की राह तकती कुर्सी को अपने स्पर्श से अभिसंचित कर डायरी का पहला पृष्ठ खोला जो साज़ोसिंगार से सुसज्जित नवविवाहिता के गुदगुदाते यौवन की सुहाग रात की कहानी कह रहा था।दुलारी को बाहों में समेटे रमेश बाबू कह रहे थे-“दुलरिया , तुम मेरा पूनम का वो चाँद हो जो मेरी अँधियारी रातों का उजाला बन कर मेरी ज़िंदगी को रौशन करने आई हो। तुम्हारी सुर्ख माँग में भरा प्रीत का सिंदूर मेरी भोर की वो लालिमा है जिसके आगोश में आकर मेरी जीवन- बगिया हर रोज़ मुस्कुरा कर महका करेगी….।” इस जुगल जोड़ी का खिलखिलाता प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि जल्दी ही घर के आँगन में बच्चों की किलकारी सुनाई पड़ने लगी। राम, लखन और कमली की निश्छल हँसी से घर गुलज़ार रहने लगा।रमेश बाबू और दुलारी ने अपने सारे हंसीन सपने इन बच्चों को समर्पित कर अब इनकी आँखों से दुनिया देखना शुरू किया।कितने सुखद थे वो पल.. जब राम नन्हे लखन के हाथ से एक फुटा गन्ना छीन कर सरपट दौड़ लगाता और लखन उसके पीछे-पीछे भागते हुए कहता -“भैया गन्ना दे दो ना। अच्छा आधा तुम्हें भी दे दूँगा।” वहीं पास खड़ी कमली दोनों पैरों से कूदती हुई ज़ोर -ज़ोर से ताली बजाती और रमेश बाबू दुलरिया को साथ लिए इस अनंत ,अगाध सुख का रसास्वादन करते हुए ईश्वर का आभार प्रकट करते। उनके दिन-रात यूँ ही खुशहाल ज़िंदगी जीते हुए गुज़रने लगे। पता ही नहीं चला, कब दुलारी माँ से सास बन गई और दो प्यारी सी बहुएँ वसुधा और सुगंधा उसकी ममता के आँचल में आ समाईं।भगवान ने छप्पर फाड़ कर खुशियाँ बरसाईं पर शायद नियति को यह मंजूर न था। उम्र का सातवाँ दशक पूरा किए हुए अभी दो दिन ही बीते थे कि अँधेरी, काली रात को मुँह बाए यमराज ने द्वार पर दस्तक दी और हार्ट अटैक के एक ही झटके ने रमेश बाबू की जीवन लीला समाप्त कर दी। उनके सीने पर सिर रख कर फ़फ़कती दुलारी के अरमानों की दुनिया के सबसे अहम किरदार ..रमेश बाबू ने आज उसे इस अँधियारी रात का हिस्सा बनाकर हमेशा के लिए उससे विदा ले ली। अरमानों की चिता सजाए , निढाल दुलारी ने असमय आए इस तूफ़ान का धैर्यपूर्वक सामना किया और कमली को सीने से लगा कर उन्हें अश्रुपूरित विदाई दी।समय की मार से कोई नहीं बच सका तो दुलारी कैसे बचती? रमेश बाबू के आँख मूँदते ही दुलारी को राम ,लखन की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। अब घर में वही होता था जो राम, लखन चाहते थे।पाश्तात्य संस्कृति के अंधे अनुकरण और आँख पर चढ़े भौतिकवादी चश्मे ने अशिष्टता को जन्म देकर संस्कारों की नींव हिला दी। अर्थशास्त्र में बी.ए. ऑनर्स कर रही कमली को पढ़ाई छुड़वा कर गृहस्थी की भट्टी में झोंक दिया गया। चाह कर भी दुलारी कुछ न कर सकी बस…कोने में पड़ी झाड़ू की तरह आँसू बहा कर अपने भाग्य को कोसती रहती। बेशर्मी की हद तो उस दिन पार हुई जब सुगंधा ने घर आईं अपनी सहेलियों से कमली का परिचय नौकरानी कह कर कराया। आँखों में आँसू भरे बेबस कमली सामने खड़ी लाचारी को देख कर वहाँ से चुपचाप चली गई। रात को माँ से चिपट कर कमली पिता को याद करके घंटों रोती रही।अचल भाव से शिला बनी दुलारी समय की मार व तीक्ष्ण वात का कटीला प्रहार चुपचाप झेलती रही। सवेरा होने पर हिम्मत जुटाकर दुलारी ने राम ,लखन के समक्ष कमली के हाथ पीले करने की बात रखी।लखन बोला — “इतनी जल्दी क्या है माँ ! अभी पिताजी का क्रियाकर्म करके चुके हैं और अब इसकी शादी… इतना पैसा आएगा कहाँ से, पिताजी ने कर्ज़े और दो ज़िंदा लाश के अलावा छोड़ा ही क्या है?” दुलारी बोली–” बेटा, घर गिरवी रख कर किसी तरह इसके हाथ पीले कर दो ताकि मैं सुकून से मर सकूँ ।” दुलारी का इतना कहना था कि राम ने माँ के घायल घावों पर नमक छिड़कते हुए कहा–“घर…किस घर की बात कर रही हो माँ ? ये घर गिरवी रख कर ही पिताजी की अंत्येष्टि की गई है।” दुलारी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।वह मूर्छित होकर धरा पर गिर पड़ी।भाग्य की विडंबना तो देखिए.. दूसरे दिन जब दुलारी ने होश सँभाला तो खुद को वृद्धाश्रम की बूढ़ी इमारत की चरमराती चार दीवारी से घिरा पाया।आज पहली बार बिना कफ़न,बिना अर्थी बिना काँधे के पति के घर से निकली इस तिरस्कृत विदाई को देख कर सारी कायनात रो रही थी।पूछने पर दुलारी को पता चला कि राम, लखन अपने से दूर कर उसे हमेशा के लिए यहाँ दफ़न करके चले गए हैं।कुछ दिन बीत जाने के बाद दुलारी ने संरक्षिक महोदया से हकीकत बयान कर कमली को साथ रखने की अनुमति ले ली और तब से आज तक ये माँ -बेटी गुमनामी के साये में सिसक-सिसक कर घुटन भरी ज़िंदगी जी रही हैं।।कलयुग में अपनी कोख से अपमानित माँ की असहनीय पीड़ा से मैं तड़प उठी और हाथ जोड़ कर भगवती से कह उठी ,”इस जन्म में मुझको बिटिया ही देना।” डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

Language: Hindi
447 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
यूं ही हमारी दोस्ती का सिलसिला रहे।
यूं ही हमारी दोस्ती का सिलसिला रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
हो तेरी ज़िद
हो तेरी ज़िद
Dr fauzia Naseem shad
*एक शेर*
*एक शेर*
Ravi Prakash
"सच्चाई"
Dr. Kishan tandon kranti
मेरे उर के छाले।
मेरे उर के छाले।
Anil Mishra Prahari
पूर्ण-अपूर्ण
पूर्ण-अपूर्ण
Srishty Bansal
कहाँ चल दिये तुम, अकेला छोड़कर
कहाँ चल दिये तुम, अकेला छोड़कर
gurudeenverma198
दोहा- सरस्वती
दोहा- सरस्वती
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
2292.पूर्णिका
2292.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
नई जगह ढूँढ लो
नई जगह ढूँढ लो
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
****बसंत आया****
****बसंत आया****
Kavita Chouhan
मोहता है सबका मन
मोहता है सबका मन
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
💐अज्ञात के प्रति-107💐
💐अज्ञात के प्रति-107💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी...
एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी...
पूर्वार्थ
गीत(सोन्ग)
गीत(सोन्ग)
Dushyant Kumar
जिंदगी के रंगमंच में हम सभी किरदार है
जिंदगी के रंगमंच में हम सभी किरदार है
Neeraj Agarwal
इशारा दोस्ती का
इशारा दोस्ती का
Sandeep Pande
युद्ध नहीं जिनके जीवन में,
युद्ध नहीं जिनके जीवन में,
Sandeep Mishra
कार्यशैली और विचार अगर अनुशासित हो,तो लक्ष्य को उपलब्धि में
कार्यशैली और विचार अगर अनुशासित हो,तो लक्ष्य को उपलब्धि में
Paras Nath Jha
मन पतंगा उड़ता रहे, पैच कही लड़जाय।
मन पतंगा उड़ता रहे, पैच कही लड़जाय।
Anil chobisa
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
Suryakant Dwivedi
Tumhe Pakar Jane Kya Kya Socha Tha
Tumhe Pakar Jane Kya Kya Socha Tha
Kumar lalit
किसी की सेवा या सहयोग
किसी की सेवा या सहयोग
*Author प्रणय प्रभात*
काल भले ही खा गया, तुमको पुष्पा-श्याम
काल भले ही खा गया, तुमको पुष्पा-श्याम
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
Ranjeet kumar patre
अपात्रता और कार्तव्यहीनता ही मनुष्य को धार्मिक बनाती है।
अपात्रता और कार्तव्यहीनता ही मनुष्य को धार्मिक बनाती है।
Dr MusafiR BaithA
Expectation is the
Expectation is the
Shyam Sundar Subramanian
कदम बढ़ाकर मुड़ना भी आसान कहां था।
कदम बढ़ाकर मुड़ना भी आसान कहां था।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
मन चाहे कुछ कहना....!
मन चाहे कुछ कहना....!
Kanchan Khanna
याद में
याद में
sushil sarna
Loading...