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27 Dec 2020 · 1 min read

‘ आँख का पानी ‘

ये दर्पण भी अजीब हैै
सबको सच दिखलाता है
पर कोई कभी भी
सच को कहाँ देख पाता है ,

सबने गंधारी की तरह
अपनी सोच में जीने के लिए
आँखों पर बांध रखी है पट्टी
सच से भागने के लिए ,

दर्पण अगर तुम्हारे चेहरे की
सुंदरता दिखाता है
वही दर्पण तुम्हारा झूठ भी तो
तुम्हारे सामने लाता है ,

इतना आसान नही होता
सच के दर्पण को झुठलाना
ये तो मन के अंदर होता है
मुश्किल होता है इससे बच पाना ,

सच के दर्पण को क्या
कोई भी ढक पाया है
वो आँखों में उतर कर
आँख का पानी कहलाया है ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 13/12/2020 )

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 384 Views
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