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3 May 2019 · 1 min read

आँखे

? आँखे ?

वो आँखें कभी हँसा करती थी,
वो आँखें कभी शरारत करती थी,
वो स्वच्छ नीर सी चमका करती थी,
वो रब्ब को सजदा करती थी,
वो आँखे अब नीर बहाती हैं,
वो आँखे सहमी अब डरती हैं,
वो अाँखे उदासी की दास्तां दोहराती हैं,
वो आँखे प्रशन अब रब्ब से करती हैं,
वो आँखे शुन्य में अब तकती हैं,
वो आँखे न जाने किस का इंतजार करती हैं।।

अरुणा डोगरा शर्मा

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