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29 May 2019 · 1 min read

#ग़ज़ल-34

#ग़ज़ल

आँखें खुली हैं ग़ाफिल दिल तो गुमकोश है
बैठे हुए हैं महफ़िल में पर ना होश है/1

यादें किसी की ताज़ा हो आई हैं लगे
लब हैं सिले से मन ही मन में इक ज़ोश है/2

रूठो नहीं मिलके जी लो हरपल हो जवां
राहें खुली हैं जीवन प्यारा आग़ोश है/3

हँसके रहो बोलो मीठे प्यारे बोल तुम
जड़ हो वही तो होके रहता ख़ामोश है/4

‘प्रीतम’ यहाँ मौज़ों के गहरे सागर बने
लूटे वही इनको जो होता ग़मपोश है/5

-आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित-radheys581@gmail.com

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