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6 May 2018 · 1 min read

अस्त सूर्य

सूर्य अस्त

घोर तिमिर की बेला थी
निस्तेज खड़ा रश्मि रथ
अश्व उसके सब बंधक
स्तब्ध पड़ा ज्योति पथ

तेज पुंज का वो पोषक
देदीप्यमान, ज्योतिर्पुंज
अग्नि थी धधक-धधक
ठंडी पड़ी दमक-दमक ।।

क्या हुआ , कैसे हुआ
किसने रचा काल यहां
सर्जक था जो सृष्टि का
घर उसके था तम वहां ।।

लो, मौन हुई उसकी कथा
जैसे दीपक की लुप्त बाती
फूली देह, फिर लाल-लाल
सूर्य अस्त की यही व्यथा ।।

-सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
1 Like · 856 Views
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