Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Dec 2016 · 6 min read

अशोक दर्द की कविताएँ

अग्निगीत
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिन्हें देश को गलियाँ बकने के बदले
जनता की गाढ़ी कमाई की बरियानी
खिलाई जाती है
देश तोड़ने की धमकियां देने के बावजूद भी
कोठी कार और सुरक्षा मुहैया करवाई जाती है

तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिनके खुद के बच्चे तो विदेशों में पढ़ते हैं
और दूसरों के मासूम हाथों से किताबें छुड़ा
हथियार पकड़ा रहे हैं

तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो मुल्क की उड़ान में बधिकों की भूमिका
निभा रहे हैं
और उगती हुई कोंपलें तोड़ने में लगे हैं
और फैलते हुए परों को मरोड़ने में लगे हैं

तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जिनकी हवाई यात्राएं आम आदमी की
पीठ पर होती हैं
तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो रिश्तों की उर्वरा जमीन को बंजर बनाने पर
तुले हुए हैं
और जलते हुए दीये बुझाने और
फूलों को खंजर बनाने पर तुले हुए हैं

तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
जो प्रेम की अनुपम बगिया उजाड़ कर
नागफनियाँ उगाने में व्यस्त हैं
और सूरज के खिलाफ अंधेरों संग साजिशें
रचने के अभ्यस्त हैं

तुम लिखो उनके खिलाफ अग्निगीत
अपनी कलम की सार्थकता के लिए और
विडम्बनाओं के खात्मे के लिए ……||
अशोक दर्द प्रवास कुटीर ,गाँव व डाकघर ,बनीखेत जिला चंबा हिमाचल प्रदेश १७६३०३

आज निकला मेरा कल निकला

आज निकला मेरा कल निकला |
सिलसिला जिन्दगी का चल निकला ||

समझा था बहते हुए झरने जिनको |
पड़ा वास्ता तो दलदल निकला ||

बेवफा प्यार का वो सच सुनकर |
सुलगता सीना मेरा जल निकला ||

लोग कहते थे खोटा सिक्का जिसको |
दौरे मुश्किल का संबल निकला ||

मुद्दतों उलझे रहे खुशियों के सवालों पर |
ख्वाहिशें छोड़ीं तो हल निकला ||

दोस्त बचपन के क्या मिले |
बूढ़ा बच्चों सा मचल निकला ||

सारी उम्र पे पड़ गया भारी |
खुशियों भरा जो पल निकला ||

डूब गये नापने की जिद्द वाले |
दर्द दिल का अतल निकला ||

इक बीज परिंदे की चोंच से गिरकर |
वक्त बीता तो फूल फल निकला ||

आस्तीन में सांप पालना

आस्तीन में सांप पालना विष निकाल कर |
करना न इतवार कभी दुश्मन की चाल पर ||

बाधा तो सफर ए जिन्दगी हिस्सा है बशर |
रस्ते निकल आयेंगे देखना निकाल कर ||

पत्थर के लोग हैं यहाँ नफरत का शहर है |
यह गठड़ी मुहब्बतों की रखना सम्भाल कर ||

दूर तलक देखना यह तल्ख़ जिन्दगी |
करना न दिल के फैसले सिक्के उछाल कर ||

सरे राह मारा जायेगा या कुचला जायेगा |
सत्ता नाराज करना न तीखे सवाल कर ||

बंजरों में बीजना हरियालियाँ सदा |
पतझड़ में खिलें फूल तू ऐसा कमाल कर ||

भागदौड़ जिन्दगी की कहाँ खत्म होती है |
अपनों से मिला कीजिये कुछ पल निकाल कर ||

निर्मल थे कल जो झरने जहरीले हो गये |
दर्द पानी पीजिये थोड़ा उबाल कर ||

रिश्ते हुए छालों के जो दर्द सहते हैं |
लाते हैं वो ही मोती सागर खंगाल कर ||

मुह्हबत की खुशबुओं के जो हिमायती नहीं |
यूं न व्यर्थ उनपे फैंका गुलाल कर ||

अशोक दर्द

कब तक

कब तक तुम पतझड़ को यूं बहार लिखाओगे |
नफरत की इबारत को तुम प्यार लिखाओगे ||

आश्वासन की भूल भुलैया में उलझाकर तुम |
कितने लोगों को मूर्ख सरकार बनाओगे ||

छेड़ छेड़ कर जाति भाषा मजहब के झगड़े |
कब तक जनता के दिल में ये खार उगाओगे ||

पार लगाने के भरम में लोगों को ठगकर |
कितनी नावें जाकर यूं मंझधार डुबाओगे ||

प्यास बुझाने के झूठे ये स्वप्न दिखाकर तुम |
मृगतृष्णा में रेत के सागर पार ले जाओगे ||

कब तक तुम इस पीढ़ी के यूं भूखे कदमों को |
तकथैया थैया गा गा करके सरकार नचाओगे ||

देश सेवा का ओढ़ मुखौटा कब तक इसे तुम |
नफरत की हवाओं से अंगार जलाओगे ||

पढ़े लिखे हाथों में डाल बेकारी की बेड़ी |
कब तक झूठे सपनों का संसार दिखाओगे ||

सब्सिडी का देकर चस्का निठल्ले लोगों को |
कब तक लेकर दुनिया से उधार खिलाओगे ||

भैंस के आगे बीन बजाने की जिद्द में ऐ दिल |
कितनी नज्में ऐसे यूं बेकार सुनाओगे ||

अशोक दर्द

बेटी
धरती का श्रृंगार है बेटी |
कुदरत का उपहार है बेटी ||

रंग-बिरंगे मौसम बेशक |
जैसे ऋतू बहार है बेटी ||
कहीं शारदा कहीं रणचंडी |
चिड़ियों की उदार है बेटी ||
दो कुलों की शान इसी से |
प्रेम का इक संसार है बेटी ||

इस बिन सृजन न हो पायेगा |
धरती का विस्तार है बेटी ||

बेटी बिन जग बेदम-नीरस |
जग में सरस फुहार है बेटी ||

मधुर-मधुर एहसास है बेटी |
पूर्णता-परिवार है बेटी ||

धरती का स्पन्दन है यह |
ईश-रूप साकार है बेटी ||

बेटे का मोह त्यागो प्यारे |
नूतन-सृजन-नुहार है बेटी ||

कुल की शान बढ़ाये बेटी |
मत समझो कि बहार है बेटी ||

दिल की बातें दर्द सुनाये |
अपने तो सरकार है बेटी ||

अन्नदाता

भरी दुपहरी में झुलसाती धूप के नीचे
कंधे पर केई उठाकर
चल देता है खेतों की ओर मौन तपस्वी |
जाड़े की ठिठुरती रातों में
अब भी करता है रखवाली
होरी बनकर अपनी फसलों की नील गायों से |
आज भी उजड़ जाते हैं उसके खेत
समय बदला मगर
उसके लिए कुछ नहीं बदला |
महंगी फीस न भर पाने की विडम्बना
झेलती है उसकी संतति और देखती है पसरी चकाचौंध
बेबस लाचार होकर |
उसकी मेहनत और बाजार का व्याकरण
कभी तालमेल नहीं बैठायेगावह बखूबी जानता है
उसके हक की आवाज कोई नहीं उठाएगा |
वह अपनी लूट का सच महसूसता है
फिर भी अपने अन्नदाता होने का फर्ज
निभाता है वचनबद्ध होकर |
वह कभी हडताल नहीं करता बेशक ऋण का बोझ
उसे कुचल ही क्यों न दे अपने पैरों तले |
जिस दिन वह हडताल करेगा
खेत में बीज नहीं बोयेगा उस दिन
भूखे पेट अन्नदाता की कीमत पहचानेगा और रोयेगा ||

नये दौर की कहानी [ कविता ]

जहरीली हवा घुटती जिंदगानी दोस्तों |
यही है नये दौर की कहानी दोस्तों ||

पर्वतों पे देखो कितने बाँध बन गये |
जवां नदी की गुम हुई रवानी दोस्तों ||

विज्ञानं की तरक्कियों ने चिड़ियाँ मार दीं |
अब भोर चहकती नहीं सुहानी दोस्तों ||

कुदरत के कहर बढ़ गये हैं आज उतने ही |
जितनी बढ़ी लोगों की मनमानी दोस्तों ||

पेड़ थे परिंदे थे झरते हुए झरने |
किताबों में रह जाएगी कहानी दोस्तों ||

हर रिश्ता खरीदा यहाँ सिक्कों की खनक ने |
कहीं मिलते नहीं रिश्ते अब रूहानी दोस्तों ||

अँधेरा ही अँधेरा है झोंपड में देखिये |
रौशन हैं महल मस्त राजा – रानी दोस्तों ||

सरे राह कांटे की तरह तुम कुचले जाओगे |
कहने की सच अगर तुमने ठानी दोस्तों ||

भर रहे सिकंदर तिजोरियां अपनी |
दर्द लाख कहे दुनिया फानी दोस्तों ||
अशोक दर्द

नूर उसका ….

जमाने भर में देखा है हमने नूर उसका तो |
जमीं के पास भी उसका फलक से दूर उसका तो ||

जमाने की हरेक शय में वही तो टिमटिमाता है |
नहीं दिखता तो तुम जानो नहीं है कसूर उसका तो ||

उसी ने ही बनाई है गुलों की यह हसीं बगिया |
गुलों के रंग भी उसके महक में सरूर उसका तो ||

बहारें भी उसी की हैं खिजां का दर्द उसका है |
शज़र के आम उसके ही शज़र का बूर उसका तो ||

यह दौलत भी उसी की है यह शोहरत भी उसी की है |
है गुमनाम यह दुनिया नाम मशहूर उसका तो |

रज़ा में उसकी राज़ी रहना ऐ जगवालों कहता हूँ |
उसे कोई टाल न पाया जो है दस्तूर उसका तो ||

लिखाता है वही नज्में बनाता है वही धुन भी |
मेरा वही एक मालिक है दर्द मजदूर उसका तो ||

विजय मुफ्त में नहीं मिलती है

विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है |
काँटों की सेज पे अपना बिस्तर यार बिछाना पड़ता है ||

निशिदिन टकराना पड़ता है तूफानी झंझावातों से |
पल –पल लड़ना पड़ता है अंधियारी काली रातों से ||
विपरीत हवाओं के रुख में भी दीप जलाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

कदम – कदम पे पड़े जूझना जाहिल और मक्कारों से |
कदम – कदम पे पड़े खेलना जलते हुए अंगारों से ||
संघर्षों की धरती पे अपना नाम लिखाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

खुद ही पोंछने पड़ते हैं लुढके आंसू गालों के |
खुद ही सहलाने पड़ते हैं रिसते घाव ये छालों के ||
विचलित होते मन को अपने खुद समझाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

सबसे ऊँचा दुनिया में निज झंडा फहराने को |
स्पर्श क्षितिज का करने को गीत विजय के गाने को ||
ऊँचे पर्वत की छोटी तक अनथक जाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

बाधाओं की गहरी खाइयाँ मीलों भंवर के फेरे हैं |
कदम – कदम पे जिधर भी देखो तूफानों के घेरे हैं ||
बीच भंवर से कश्ती को खुद बाहर लाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

सुख –चैन प्यारे त्याग- त्यागकर रात- रात भर जाग- जागकर |
अवरोधों के कांटे चुनकर समय से आगे भाग – भागकर ||
स्वेदकणों से सपनों का मानचित्र बनाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

जाल बिछाए बैठे हैं बधिक बहुत जमाने में |
कभी साथ नहीं आता है किसी को कोई छुड़ाने में ||
जाल तोड़कर स्वयम को यारो स्वयं उडाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

शह – मात का खेल खेलने कई बिसात बिछाए बैठे हैं |
लेकर तीर कमान हाथ में घात लगाये बैठे हैं ||
शतरंजी चालों से दर्द स्वयं को स्वयं बचाना पड़ता है |
विजय मुफ्त में नहीं मिलती है मोल चुकाना पड़ता है ||

अशोक दर्द [बेटी डा. शबनम ठाकुर के साथ-साथ दुनिया की तमाम बेटियों के लिए ]

Language: Hindi
695 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हाथ पर हाथ धरे कुछ नही होता आशीर्वाद तो तब लगता है किसी का ज
हाथ पर हाथ धरे कुछ नही होता आशीर्वाद तो तब लगता है किसी का ज
Rj Anand Prajapati
लम्हों की तितलियाँ
लम्हों की तितलियाँ
Karishma Shah
खंड: 1
खंड: 1
Rambali Mishra
ये कमाल हिन्दोस्ताँ का है
ये कमाल हिन्दोस्ताँ का है
अरशद रसूल बदायूंनी
श्राद्ध
श्राद्ध
Mukesh Kumar Sonkar
उपेक्षित फूल
उपेक्षित फूल
SATPAL CHAUHAN
अर्ज किया है
अर्ज किया है
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
बवंडर
बवंडर
Shekhar Chandra Mitra
दगा बाज़ आसूं
दगा बाज़ आसूं
Surya Barman
23/16.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
23/16.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
आजा रे आजा घनश्याम तू आजा
आजा रे आजा घनश्याम तू आजा
gurudeenverma198
कभी जिस पर मेरी सारी पतंगें ही लटकती थी
कभी जिस पर मेरी सारी पतंगें ही लटकती थी
Johnny Ahmed 'क़ैस'
#जिन्दगी ने मुझको जीना सिखा दिया#
#जिन्दगी ने मुझको जीना सिखा दिया#
rubichetanshukla 781
प्रेम पर बलिहारी
प्रेम पर बलिहारी
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
गरीबी……..
गरीबी……..
Awadhesh Kumar Singh
जो गुरूर में है उसको गुरुर में ही रहने दो
जो गुरूर में है उसको गुरुर में ही रहने दो
कवि दीपक बवेजा
जिंदगी की कहानी लिखने में
जिंदगी की कहानी लिखने में
Shweta Soni
मैया तेरा लाडला ये हमको सताता है
मैया तेरा लाडला ये हमको सताता है
कृष्णकांत गुर्जर
💐प्रेम कौतुक-309💐
💐प्रेम कौतुक-309💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
हम ऐसी मौहब्बत हजार बार करेंगे।
हम ऐसी मौहब्बत हजार बार करेंगे।
Phool gufran
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
कभी - कभी सोचता है दिल कि पूछूँ उसकी माँ से,
Madhuyanka Raj
उम्र न जाने किन गलियों से गुजरी कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए कुछ उन
उम्र न जाने किन गलियों से गुजरी कुछ ख़्वाब मुकम्मल हुए कुछ उन
पूर्वार्थ
* वक्त की समुद्र *
* वक्त की समुद्र *
Nishant prakhar
,,........,,
,,........,,
शेखर सिंह
आकाश दीप - (6 of 25 )
आकाश दीप - (6 of 25 )
Kshma Urmila
समय के खेल में
समय के खेल में
Dr. Mulla Adam Ali
किया है तुम्हें कितना याद ?
किया है तुम्हें कितना याद ?
The_dk_poetry
पेड़ - बाल कविता
पेड़ - बाल कविता
Kanchan Khanna
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
अश्रु से भरी आंँखें
अश्रु से भरी आंँखें
डॉ माधवी मिश्रा 'शुचि'
Loading...