अवन्ति दर्शन
अवन्ति की धरती पावन,
होता हर दिन यहाँ सावन ।
इस माटी को मेरा नमन,
जहाँ आए श्री भगवन ।
देखो ऋषि सांदीपनि का आश्रम ,
यही पढ़े थे सुदामा संग श्याम ।
नगरी यह महाकाल की,
देवो के देव महादेव की ।
करके रामघाट पर तुम क्षिप्रा स्नान,
आगे बढ़ो करने को फिर पुण्य दान ।
महाकाल की देखो भस्म आरती,
अद्भुत रूप जिन्हें आंखे निहारती ।
समय की गणना बताता जंतर मंतर ,
उज्जैन से गुजरती है रेखा देशांतर ।
माँ हर सिद्दी को करते सब प्रणाम ,
काल भैरव देखने पहुँचो हर शाम ।
सब मंगल होता है, दिन मंगलवार,
मंगलनाथ को अर्पण फूलों का हार ।
भृतहरि की गुफाएँ अद्भुत पौराणिक,
प्राचीनता का बोध कराती रमणीक ।
स्नान कर होते है पावन,
इनको कहते कुंड बावन।
बारह वर्ष में लगता कुम्भ मेला,
सिंहस्थ की होती अनुपम बेला ।
यहाँ की माटी पवित्र चंदन समान,
गणेश प्रतिमा भी है आलीशान ।
अब देखो तुम गोपाल मंदिर ,
चाँदी के द्वार है अतिसुन्दर ।
कालिदास की यह नगरी,
सप्तपुरियों में से एक पूरी ।
एक बार अवश्य आए अवन्ति ,
मिलेगी मन को असीम शान्ति ।
।।।जेपीएल।।।