अलौकिक आलिंगन
प्रकृति का अंतरंग रूप देख
नजरों से नजर देख
पुरुष की आसक्ति बढ़ने लगी
आहद नाद होने लगी ।
मखमली बदन पर उसके
अंगड़ाइयाँ खुलने लगी
दबी आग जलने लगी
जली आग बुझने लगी ।
संवेशन हर कोण से
हर दिशा ,हर छोर से
मृदंग नाद बजने लगी
सीस्कृत ध्वनियां बढ़ने लगी ।
सूखे लबों पर
ओस की गुलाबी चादर चढ़ने लगी
और प्यास तृप्त होने लगी
आकाश गंगाएँ बहने लगी ।
प्रारम्भ हुआ मैथुन अलौकिक
नशों के रोम रोम से
पसीने की गंध उड़ने लगी
और खुल गया नदी का मुहाना
गूँथ गये हाथ पैर
लताओं की तरह
क्षीरमलक होकर बैठ गए
एक फूल में दो मधुकर की तरह।
चिंगारी सुलगी थी जो वर्षों पहले
आज बिजली बन गिरने लगी
कोटि कोटि बीजो की बारिश होने लगी
प्रकृति-पुरुष की लीला लौकिक होने लगी ।
अव्यक्त श्रष्टि व्यक्त होने लगी
मंथन के निरन्तर चाल से
माया निकलकर
नया जाल बुनने लगी
ब्रह्माण्ड के शंख नाद से ।।।