अलग मज़ा है
किसी पे मर के जीने का अलग मज़ा है।
जीना हो यार के बिना तो एक कज़ा है।
बहुत मुश्किल है इश्क़ की राहें जाना
लोगों की बात तो ये बिल्कुल बज़ा है।
दर्द अब इतना अहम है मेरी लिए यारा
जिंदगी इसके बिना तो बेमज़ा है।
बात बात पर रूठते क्यों रहते हो तुम
जानते हो ,तेरा रूठना एक सज़ा है।
मिले जो जब से तुम, सजदे में हूं मैं
इसमें भी कोई ,खुदा ही की रज़ा है।
सुरिंदर कौर