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18 Apr 2017 · 1 min read

अलग पहचान रखते हैं

दिवाने हैं हथेली पर हमेशा जान रखते हैं
उबलते दर्द सीने में मगर मुस्कान रखते हैं

उजाला बाँटते सबको मोहब्बत ही सिखाते हैं
भले अपना घरौंदा ही सदा सुनसान रखते हैं

मुझे महसूस कर लोगे भले हो भीड़ लाखों की
मिलाते हाथ तो सबसे अलग पहचान रखते हैं

मिले दुश्मन अगर हम से गले से भी लगाते हैं
भरे शोले निग़ाहों में दिल मे तूफान रखते हैं

तुझे पाने की हसरत है मगर तुम से ही डरता हूँ
तेरी मुस्कान की खातिर छुपा अरमान रखते हैं

मुझे लूटा यहाँ जिसने अगर मेरे दर आता है
भुला सारे गिले शिकवे बना मेहमान रखते हैं

सितमगर लाख हो कोई डिगा सकता नही मुझको
जुदा कैसे करोगे जिस्म दो इक जान रखते हैं

– ‘अश्क़’

2 Likes · 2 Comments · 279 Views
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