अलग कुछ कहती है ।
दावों की तासीर, अलग कुछ कहती है।
शहरों की तस्वीर, अलग कुछ कहती है।
मजदूरों की, मजबूरी का दर्द अलग,
मदिरा-लय की भीड़, अलग कुछ कहती है।
फ़रमाया नाजी ने, सब कुछ अच्छा है,
पर हालत गंभीर, अलग कुछ कहती है।
तर्क अलग, सब बात अलग ही करते है,
घर-घर की जंजीर अलग कुछ कहती है।
तेरी किस्मत में शायद कुछ बेहतर हो,
मेरी तो तकदीर, अलग कुछ कहती है।
सब कहते थे, जान गई थी झगड़े में,
अब राँझे की हीर, अलग कुछ कहती है।
विनय “बाली” सिंह।
वाराणसी, उत्तरप्रदेश
मो0-9792497553