*अर्द्धांगिनी*
मेरे दिल की अंतरंग तरंग हो तुम,
दूर रहकर भी मेरे संग-संग हो तुम।
भूल जाता हूँ सारी दुनिया तुम्हें पाकर,
मेरे जीवन का अभिन्न अंग हो तुम।
नहीं कहते यूँ ही अर्ध्दांगनी पत्नी को,
पग-पग रहवर जीवन-संगिनी हो तुम।
जब-जब टूटा मैं हालाती अँधेरे में,
तब-तब किया मुझे तुमने सबेरे में।
जब-जब लड़खड़ाए कदम राहों में,
बैसाखी बन थामा है तुमने बाँहों में।
जला चिराग रोशन कर दिया जीवन,
अँधेरी रात में दहकता पराग हो तुम।
अपनी उम्मीदों पर सदा खरा उतरूँगा,
जीवन बगिया का कुसुम्बी रंग हो तुम।
दो सुंदर दीप प्रज्वलित कर तुमने,
मेरा हृदयांगन रोशन दान किया।
सुसंस्कारी पोखन दे फिर तुमने,
मेरा कुल सदा आभावान किया।
तुम गुल बगिया मेरे जीवन की,
मेरी आन-बान,सम्मान हो तुम।
खिल उठती कानों तक बांछें देख तुम्हें,
अमित अखिल सुमुस्कान हो तुम।
हज नहीं सफ़र-ए-ज़िंदगी का ‘मयंक’,
बढ़ते हर लम्हे की उगती उमंग हो तुम।
के.आर. परमाल “मयंक”