**अरे सुनो सुनो मेरे बोल**
घूम घूम के सारी, मैंने देखी दुनियादारी ।
फिर बात यह मैंने विचारी ,लिखने की की तैयारी ।
अरे सुनो – सुनो मेरे बोल , मै लिख लाया अनमोल ।।
(१) स्कूल गया मैं पढ़ने, सपने अपने गढ़ने ,
शिक्षक के साथ में जुड़ने।
पर कोई ना मुझे पढ़ाये, दिन सारा बीत ही जाए ।
न विद्यादान कराएं, हम अनपढ़ ही रह जाएं।
निर्धन का न कोई मोल ,सुनो सुनो मेरे बोल,
मैं लिख लाया अनमोल ।।
(२) घर से मैं तो निकला, भीड़ में जाकर फिसला,
बातो का चल रहा घपला।
कोई भ्रष्टाचार सुनाएं ,कोई दुखड़े अपने गाए।
किस-किस को हम समझाएं, कोई बात समझ ना पाए।
कोई खोले ना अपनी पोल, अरे सुनो सुनो मेरे बोल,
मैं लिख लाया अनमोल ।।
(३) फिर देखी कालाबाजारी , थी गली गली में जारी ।
मजबूरी जिसमें हारी ,मानवता थी जहां हारी।
धंधे में चूना लगाए, अनपढ़ को ठगते जाए।
महल थे जिसने बनाए मजदूर सड़क सो जाए।
कोई दया ना उन पर करता ,वह सिसक सिसक कर मरता।
अनुनय बस यह चाहूं, जब बीच में इनके जाऊं,
घोलू प्रीत का घोल, अरे सुनो सुनो मेरे बोल,
मैं लिख लाया अनमोल।।
राजेश व्यास अनुनय