अरुण लालिमा लिए दिवाकर
सुप्रभात संग कुछ पंक्तियां निवेदित:
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अरुण लालिमा लिए दिवाकर जगती का वंदन है।
शुभ्र भोर का पल पल हिय से उसका आलिंगन करता है।।
भौरें ललचाई नज़रों से कलियों पर मंडराते देखो,
और तितलियों का झुरमुट भी फूलों का चुंबन करता है।।
अंध दौड़ में शामिल होकर जीवन का आनंद खो रहे,
जीवन तो अनमोल रतन है क्यों नित अवमूल्यन करता है।।
कहै अटल कविराय रे मनवा तुम भी कुछ इनसे सीखो!
समरसता के भाव रखो अब खुद ही क्यों क्रंदन करता है।।
अभिनय हुआ बहुत रे मानव शुचिता भाव बसाओ मन में,
नाच नचाया सारे जग को खुद क्यों अब नर्तन करता है।
?अटल मुरादाबादी ?