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16 Jun 2020 · 1 min read

अरविंद सवैया

अरविंद सवैया ( सगण×8+लघु)
अतिवृष्टि अकाल कभी करते ,नव रोग धरा पर क्रूर प्रहार।
जन मानस व्याकुल पीड़ित है,अवसाद रहा उर पैर पसार।
घर खर्च नहीं चलता अब तो, निरुपाय हुए सब बंद पगार।
लगता कलिकाल प्रचंड हुआ,कुछ तो भगवान करो उपचार।।1

रथ स्वार्थ चढ़े जग लोग सभी,बदला-बदला,लगता व्यवहार।
उनका अब आदर-मान नहीं ,पर पीर हरें जो करें उपकार।
घर भीतर प्यार भरे सिसकी ,पर बाहर है मधुमास बहार।
यह संस्कृति रीति नहीं अपनी,वह है अति शीतल मंद बयार।।2

विधान – सगण×8+ लघु

सब सूख गए अब ताल नदी पड़ती गरमी नित ही अविराम।
अति उग्र दिखे जब सूरज तो सब पूर्ण करें कब हे प्रभु! काम।
जगती अति व्याकुल आतप से दुख दूर करो बरसो घनश्याम।
सब व्यर्थ हुए अब यत्न यहाँ जग आय करो वसुधा अभिराम।।

डाॅ बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
1 Comment · 1256 Views
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