अमीरी-गरीबी
अमीरी-गरीबी
बहस छिड़ गयी एक दिन
अमीरी और गरीबी में !!
नाक उठा ‘अमीरी’ बोली बड़े शान से
काम बन जाते है सिर्फ मेरे नाम से
हर किसी की चाहत पाना मुझको
दूर हो जाते कष्ट सिर्फ मेरे दाम से !!
आन बान शान दिखाना हो जिसको
आकर सानिध्य मेरे करता डिस्को
दुनिया का सरताज बना देती हूँ, मैं
खुले भाग्य, जिसने जाना मुझको !!
ठाठ बाट है मेरे दुनिया में निराले
पड़ जाते है अच्छो-२ के मुहँ ताले
बिन मेरे जिंदगी में कोई रास नही
सफ़ेद हो जाते मुझसे धंधे सारे काले !!
दुनियादारी की इकलौती जान हूँ
बड़प्पन की खुद बनी पहचान हूँ
उसके सर पर सदैव रहता ताज़
जब बन जाती किसी की गुलाम हूँ !!
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सुनकर सारी राम कहानी
धीरे से बोली ‘गरीबी’ रानी
बहुत सुन लिया तेरा बखान
बहन अब सुन मेरी जुबानी !!
माना के कुछ भी मुझ में ख़ास नही
इसलिए करता मेरी कोई आस नही
दुःख , दीन, दरिद्रता मेरी झोली में
बस इसके सिवा कुछ मेरे पास नही !!
गरीबी के हाथो की लकीरो से जो रक्त बहती हैं
बस उसी के दम पर अमीरी तू जिन्दा रहती हैं
वक़्त मिले तो झाँक लेना दिल किसी गरीब का
समायी उसमे तमन्नाये तमाम बेलिबास रहती है !!
तू क्या जाने कीमत किसी कम-नसीब की
कभी झोली खाली होती नही बे-नसीब की
उसके आँसु बहा-बहा कर भी कम नहीं होते
तू क्या जाने कितनी अमीर होती आँखें ग़रीब की…!!
खरीद सके तो खरीद के दिखा
दुःख दर्द और जान किसी की
मान जाऊं उस दिन लोहा तेरा
दे सके वापस ढली उम्र किसी की !!
जाकर देख इंसानियत के द्वारे
जिस घर गरीबी शान से रहती है !
घुटने टेक देती है अमीरी वंहा पर
जिस जगह रब की इनायत होती है !!
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रचनाकार ::—- डी के निवातिया